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लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो.रूपरेखा वर्मा के जज्बे को सलाम, 81 की उम्र में समतावादी समाज के लिए संघर्ष जारी

By संतोष सिंह 
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लखनऊ। दुबली-पतली काया 81 की उम्र और फिर भी चाल में चुस्ती बरकरार है, जी हां आत्मविश्वास से लबरेज दार्शनिक, लेखिका ,सामाजिक कार्यकर्ता व लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा के जीवन संघर्षों से आज हम आपको रू-ब-रू कराने जा रहे हैं। आज भी वह जीवन के इस पड़ाव में एक सामाजिक संस्था ‘सांझी दुनिया’ से जुड़ी हुई हैं। बताते चलें कि लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा के नाम एक और रिकॉर्ड है। विश्वविद्यालय के 100 साल के गौरवशाली इतिहास में पहली महिला कुलपति होने का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम के दर्ज है।

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शादी के बाबत पूछने पर कहा कि कुछ को मैं पसंद नहीं आई और कुछ…

यूपी के मैनपुरी जिले में जन्मी प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा के पिता सरकारी चिकित्सक थे तो उनके तबादलों के कारण हर कुछ साल में पता बदलता रहता था। हालांकि पिता ने मैनपुरी में मकान बनवा दिया था, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए रूपरेखा वर्मा लखनऊ आ गईं और यहां छात्रावास में रहीं। लखनऊ विश्‍वविद्यालय में दर्शन शास्‍त्र की पढ़ाई की और फिर यहीं दर्शन शास्‍त्र की प्रवक्ता और प्रोफेसर बनीं और उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति का भी दायित्व भी संभाला। भाई बहनों में सबसे छोटी प्रोफेसर वर्मा ने शादी नहीं की। इस बाबत पूछने पर उन्‍होंने कहा कि कुछ को मैं पसंद नहीं आई और कुछ…।

प्रोफेसर वर्मा भाजपा, कांग्रेस, लेफ्ट…  के खिलाफ आवाज बुलंद की

लखनऊ विश्वविद्यालय में चार दशक तक अध्यापन से जुड़ी रहीं प्रोफेसर वर्मा को सामाजिक आंदोलनों से जुड़े भी काफी वक्त गुजर गया है। प्रोफेसर वर्मा भाजपा, कांग्रेस, लेफ्ट… समेत सभी दलों की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती हैं? आपातकाल में वह कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलित रहीं तो महिलाओं से जुड़े एक मामले में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बयान के खिलाफ सड़क पर उतर कर आंदोलन किया। कई सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर भी उनके प्रतिरोध का स्वर मुखर रहा है। प्रोफेसर वर्मा ने दावा किया कि मैं संतुलित हूं, जो भी गलत बोलेगा उसके खिलाफ हूं। हर कट्टरपन, बेवकूफी और जुल्म के खिलाफ हूं। चाहे सपा करे, चाहे भाजपा करे, चाहे कांग्रेस करें।

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2006 में इंडियन सोशल साइंस एसोसिएशन द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित

प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ने दार्शनिक तर्क और ज्ञानमीमांसा, सामाजिक दर्शन, मन का दर्शन और तत्वमीमांसा के क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रकाशन किया है। प्रो. वर्मा ने अंतर-धार्मिक हिंसा और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में भी हस्तक्षेप किया है। उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव के लिए बेगम हज़रत महल पुरस्कार और 2006 में इंडियन सोशल साइंस एसोसिएशन द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें ऑक्सफोर्ड के लिए कॉमनवेल्थ एकेडमिक स्टाफ फेलोशिप मिला चुका है। कई भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विभिन्न सम्मेलनों/अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में व्याख्यान देने और शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है।

प्रोफेसर वर्मा की फिलॉसफी, सोशल फिलॉसफी, मेटा फिजिक्स, आदि में काफी रुचि

एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रोफेसर वर्मा ने महिलाओं पर हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा के कई दर्जन मामलों में हस्तक्षेप किया है। पीड़ितों के लिए न्याय के लिए लड़ाई लड़ी है। प्रोफेसर वर्मा को आमिर खान के चर्चित कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ में भी बुलाया जा चुका है।रूपरेखा वर्मा एक प्रसिद्ध और गंभीर लेखिका भी हैं। उनके चार दर्जन से अधिक शोध पत्र भारत और विदेशों में विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रोफेसर वर्मा की फिलॉसफी, सोशल फिलॉसफी, मेटा फिजिक्स, आदि में काफी रुचि है। उन्हें भारत सरकार द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और महिला समाख्या के कार्यकारी परिषद सदस्य के रूप में नामित किया जा चुका है। इसके अलावा एनसीईआरटी, भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय और यूपी समाज कल्याण बोर्ड की अकादमिक समितियों में शामिल रही हैं।

अगर मैं कोशिश करना बंद कर दूं तो मैं खुद का सामना कैसे कर सकती हूं?

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1980 के दशक में जब रूप रेखा वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग का नेतृत्व कर रही थीं उन्होंने उन सहयोगियों के खिलाफ एक लंबी, अकेली लड़ाई लड़ी, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि वे आरएसएस से जुड़े थे और संगठन की विचारधाराओं के प्रचार के लिए विभाग का उपयोग करना चाहते थे। एक ऐसे युग में जब अधिकांश शहरी विरोध सोशल मीडिया पर होता है, वर्मा सड़क पर जाति, लिंग और धर्म की असमानताओं से लड़ती हैं। निराशाजनक समय में वह खुद से सवाल करती है कि अगर मैं कोशिश करना बंद कर दूं तो मैं खुद का सामना कैसे कर सकती हूं?

प्रोफेसर वर्मा का सपना है कि समतावादी समाज स्थापना हो , हम सोचते हैं कि जितना दम बचा है लड़ा जाए

प्रोफेसर वर्मा का सपना है कि समतावादी समाज स्थापना हो। उन्होंने कहा कि जहां जाति, धर्म, क्षेत्र, बोली, पहनावे, खान पान के आधार पर भेद न हो और हमारा सपना ऐसे देश को देखना है। उन्‍होंने कहा कि इधर कुछ सालों में धर्म और जाति के आधार पर नफरत और वैमनस्य बढ़ा है। इसलिए देश में विभाजनकारी चेतना ज्यादा बढ़ी है और एक दूसरे के दुख दर्द को बांटने की चेतना खत्म होने के कगार पर दिखती है। यह चीज हमें कांटे की तरह चुभती है और हम सोचते हैं कि जितना दम बचा है लड़ा जाए।

दक्षिणपंथी समूह  फर्जी खबरें  ट्वीट और तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर,महिला के यौन चरित्र पर आक्षेप लगाने तक पहुंच जाते हैं

वर्मा ने कहा कि पिछले चार दशकों के उनके अनुभव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देश में दक्षिणपंथी राजनीति क्यों बढ़ रही है? 80 के दशक में वर्मा को जिस उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। वह बिल्कुल उसी रणनीति के समान है जो दक्षिणपंथी ट्रोल असहमति जताने वाली महिलाओं को चुप कराने के लिए अपनाते हैं। खासकर सोशल मीडिया पर। समूह में काम करते हुए, वे फर्जी खबरें फैलाकर, वर्तमान परिदृश्य में ट्वीट और तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करके किसी व्यक्ति को लगातार निशाना बनाते हैं और अक्सर एक महिला के यौन चरित्र पर आक्षेप लगाने तक पहुंच जाते हैं।

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