नई दिल्ली। आगामी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले दलित राजनीति गरमाने लगी है। पंजाब (Punjab) में दलित मुख्यमंत्री पर दांव लगाकर कांग्रेस(Congress) ने राज्य में अपने निजी दलित समीकरणों को साधा तो है इसके साथ ही इस फैसले ने सभी दलों को भी सक्रिय कर दिया है।
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चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी के बाद जिस तरह से बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) ने प्रतिक्रिया दी और भाजपा ने भी अपने दलित नेताओं को उतारा उससे साफ है कि सभी दल दलित राजनीति के दांव (Danv) की अहमियत को समझने लगे हैं।
पंजाब के दलित समुदाय की प्रमुख जातियों में रोटी व बेटी(Daughter) का संबंध न होने से वहां पर दलित राजनीति सफल नहीं हो पाई है। आपको बता दें कि बसपा के संस्थापक कांसीराम(Kanshiram) पंजाब से थे, लेकिन इसी वजह से वह भी राज्य में बसपा का जनाधार नहीं बना सके थे।
दलित राजनीति (Dalit politics) गर्माने का एक प्रमुख कारण ये भी है कि दलित राजनीति से जुड़े यह समीकरण केवल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, इनका असर अगले लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। देश भर में दलित आबादी 16.6 फीसदी है। लेकिन पंजाब में इसकी संख्या 32 फीसदी व उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी है।