राम जी की कुंडली
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नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
रामचरितमानस के बालकांड में इस दोहे का उल्लेख मिलता है। इस दोहे में भगवान राम के जन्म का समय बताया है। इसके मुताबिक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन श्रीराम का जन्म हुआ था। उनका जन्म कर्क लग्न में अभिजीत मुहूर्त में हुआ था। भगवान श्रीराम की कुंडली में कई तरह के शुभ और अशुभ योग हैं। जिसका उनके जीवन पर भी प्रभाव पड़ा था। श्रीराम की कुंडली में रूचक योग, शश पंच योग, महापुरुष योग, हंस योग और लग्न में शत्रुहंता योग भी बन रहा है।
जब श्रीराम का जन्म हुआ था तो उनकी कुंडली में सप्तम भाव में उच्च का मंगल विराजमान था, जोकि मांगलिक दोष को दर्शाता है। इस वजह से श्रीराम को वैवाहिक जीवन में कई तरह की समस्याओं और विरह आदि का भी सामना करना पड़ा था। वहीं कुछ ज्योतिष का यह भी मानना है कि श्रीराम की कुंडली में नीच का गुरु होने की वजह से उनको मां सीता से वियोग मिला था।
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इसके साथ ही उनकी कुंडली में मातृ भाव में शनि ग्रह और पितृ भाव में सूर्य देव विराजमान हैं। मान्यता है कि सूर्य और शनि के संबंध मधुर नहीं होते हैं, जिस वजह से भगवान श्रीराम का अपने माता-पिता से वियोग हुआ था।
36 गुणों का मिलना नहीं होता है शुभ
बता दें कि हिंदू धर्म में शादी के समय लड़का और लड़की की कुंडली मिलाई जाती है। वैसे तो किसी भी कुंडली में 36 के 36 गुण मिलना काफी मुश्किल होता है। लेकिन अगर किसी लड़के और लड़की की कुंडली में पूरे 36 गुण मिलते हैं, तो उनका विवाह करना शुभ नहीं माना जाता है। क्योंकि श्रीराम और मां सीता की कुंडली में विवाह के दौरान 36 गुण मिले थे। लेकिन इसके बाद भी श्रीराम और मां सीता को वैवाहिक जीवन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।