नई दिल्ली। सुदूर अंतरिक्ष में जब भी कोई मिशन जाता है, तो उसमें लगाए गए ऑनबोर्ड कंप्यूटर से मिले आंकड़े ही उस मिशन की सही हालत बताते हैं। यही हाल Chandrayaan-3 के साथ भी है। सुरक्षित लैंडिंग से ठीक पहले 15 मिनट में यही आंकड़े वैज्ञानिकों की सांसें फुलाकर रखेंगे। इन्हें Fifteen Minutes of Terror कहते हैं।
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Chandrayaan-3 की लैंडिंग 23 अगस्त की शाम छह बजकर चार मिनट पर होनी है। अब ज्यादा समय बचा नहीं है। विक्रम लैंडर 25 km x 134 km की ऑर्बिट में घूम रहा है। इसी 25 किलोमीटर की ऊंचाई से इसे नीचे की तरफ जाना है। पिछली बार चंद्रयान-2 अपनी ज्यादा गति, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन फेल्योर की वजह से गिर गया था।
इस बार वह गलती न हो इसलिए चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स और कैमरे लगाए गए हैं। LHDAC कैमरा खासतौर से इसी काम के लिए बनाया गया है कि कैसे विक्रम लैंडर को सुरक्षित चांद की सतह पर उतारा जाए। इसके साथ कुछ और पेलोड्स लैंडिंग के समय मदद करेंगे, वो हैं- लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC), लेजर अल्टीमीटर (LASA), लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) मिलकर काम करेंगे। ताकि लैंडर को सुरक्षित सतह पर उतारा जा सके।
विक्रम लैंडर में इस बार दो बड़े बदलाव किए गए हैं। पहला तो ये कि इसमें बचाव मोड (Safety Mode) सिस्टम है। जो इसे किसी भी तरह के हादसे से बचाएगा। इसके लिए विक्रम में दो ऑनबोर्ड कंप्यूटर लगाए गए हैं, जो हर तरह के खतरे की जानकारी देंगे। इन्हें यह जानकारी विक्रम पर लगे कैमरे और सेंसर्स देंगे।
जानें कैसे होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग?
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– विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू करेगा। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगेगा। यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक।
– 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर होगा।
– 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो जाएगी। अगला लेवल 800 मीटर होगा।
– 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजेंगे।
– 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच।
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– 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच।
– 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी।
– चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी।
लैंडिंग के बाद कौन से पेलोड्स करेंगे काम ?
इसके बाद विक्रम लैंडर में लगे चार पेलोड्स काम करना शुरू होंगे। ये हैं रंभा (RAMBHA)। यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा। चास्टे (ChaSTE), यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा। इल्सा (ILSA), यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा। लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA), यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा।
चंद्रयान-2 ने भी साध लिया है चंद्रयान-3 से संपर्क
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चंद्रयान-3 के लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए इसरो ने दो माध्यमों का सहारा लिया है। पहला तो ये है कि Chandrayaan-3 में इस बार ऑर्बिटर नहीं भेजा गया। उसकी जगह प्रोपल्शन मॉड्यूल (Propulsion Module) भेजा गया है। जिसका मकसद सिर्फ चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल (Lander Module) को चांद के नजदीक पहुंचाना था। इसके अलावा लैंडर और बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) के बीच संपर्क स्थापित करना था।
यहां देख सकते हैं लैंडिंग को Live
आप नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके लाइव देख सकते हैं… लाइव प्रसारण 23 अगस्त 2023 की शाम 5 बजकर 27 मिनट से शुरू होगा…
ISRO की वेबसाइट…isro.gov.in
YouTube पर…https://www.youtube.com/watch?v=DLA_64yz8Ss
Facebook पर…https://www.facebook.com/ISRO
या फिर डीडी नेशनल टीवी चैनल पर
Chandrayaan-3 की लैंडिंग 23 अगस्त की शाम छह बजकर चार मिनट पर होनी है। अब ज्यादा समय बचा नहीं है। विक्रम लैंडर 25 km x 134 km की ऑर्बिट में घूम रहा है। इसी 25 किलोमीटर की ऊंचाई से इसे नीचे की तरफ जाना है। पिछली बार चंद्रयान-2 अपनी ज्यादा गति, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन फेल्योर की वजह से गिर गया था।
इस बार वह गलती न हो इसलिए चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स और कैमरे लगाए गए हैं। LHDAC कैमरा खासतौर से इसी काम के लिए बनाया गया है कि कैसे विक्रम लैंडर को सुरक्षित चांद की सतह पर उतारा जाए। इसके साथ कुछ और पेलोड्स लैंडिंग के समय मदद करेंगे, वो हैं- लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC), लेजर अल्टीमीटर (LASA), लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) मिलकर काम करेंगे। ताकि लैंडर को सुरक्षित सतह पर उतारा जा सके।
विक्रम लैंडर में इस बार दो बड़े बदलाव किए गए हैं। पहला तो ये कि इसमें बचाव मोड (Safety Mode) सिस्टम है। जो इसे किसी भी तरह के हादसे से बचाएगा। इसके लिए विक्रम में दो ऑनबोर्ड कंप्यूटर लगाए गए हैं, जो हर तरह के खतरे की जानकारी देंगे। इन्हें यह जानकारी विक्रम पर लगे कैमरे और सेंसर्स देंगे।
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जानें कैसे होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग?
– विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू करेगा। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगेगा। यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक।
– 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर होगा।
– 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो जाएगी। अगला लेवल 800 मीटर होगा।
– 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजेंगे।
– 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच।
– 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच।
– 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी।
– चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी।
लैंडिंग के बाद कौन से पेलोड्स करेंगे काम ?
इसके बाद विक्रम लैंडर में लगे चार पेलोड्स काम करना शुरू होंगे। ये हैं रंभा (RAMBHA)। यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा। चास्टे (ChaSTE), यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा। इल्सा (ILSA), यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा। लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA), यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा।
चंद्रयान-2 ने भी साध लिया है चंद्रयान-3 से संपर्क
चंद्रयान-3 के लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए इसरो ने दो माध्यमों का सहारा लिया है। पहला तो ये है कि Chandrayaan-3 में इस बार ऑर्बिटर नहीं भेजा गया। उसकी जगह प्रोपल्शन मॉड्यूल (Propulsion Module) भेजा गया है। जिसका मकसद सिर्फ चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल (Lander Module) को चांद के नजदीक पहुंचाना था। इसके अलावा लैंडर और बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) के बीच संपर्क स्थापित करना था।