नई दिल्ली: जब भी पांडव मुश्किल में फंसे तो भगवान श्रीकृष्ण ने ही उन्हें मुश्किलों से पार किया, ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि हर पल पांडवों का साथ देने वाले कृष्ण उस वक़्त कहां थे जब पांडव जुआ खेल रहे थे और शकुनी की हर चाल में फंसते जा रहे थे।
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यहां तक की धर्मराज युधिष्ठिर पत्नी को भी दांव पर लगा बैठते हैं, तब कृष्ण उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए उनके साथ क्यों नहीं थे। जिस तरह से ये सवाल हर आम इंसान को परेशान करता है, तब युधिष्ठिर भी समझ नहीं पाए कि आखिर कृष्ण मुश्किल घड़ी में उनके साथ क्यों नहीं थी, तभी तो महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर ने यही सवाल श्रीकृष्ण से किया था।
तब श्रीकृष्ण ने बताया था कि वे उस समय शाल्व से युद्ध कर रहे थे। दरअसल, श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था। इसका बदला लेने के लिए शिशुपाल के दोस्त शाल्व ने द्वारिका पर हमला कर दिया था। शाल्व के पास सौभ नामक एक विमान था, जो उसके इशारों पर चलता था। शाल्व ने भगवान शिव की तपस्या से यह विमान हासिल किया था। यह विमान चालक की इच्छानुसार किसी भी स्थान पर जा सकता था। यह विमान सामान्य लोगों को नजर भी नहीं आता था।
पांडवों के साथ इंद्रप्रस्थ में थे मौजूद
युधिष्ठिर के प्रश्न का जवाब देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने बताया, ‘उस समय तो मैं पांडवों के साथ इंद्रप्रस्थ में ही था। शिशुपाल की मौत से बौखलाए शाल्व ने यादवों का कत्लेआम शुरू कर दिया. तब द्वारिका में मौजूद उद्धव, प्रद्युम्न, चारुदेष्ण और सात्यकि आदि ने बहुत समय तक शाल्व से युद्ध किया।’ शाल्व ने विमान पर अनेक सैनिकों को सवार कर द्वारिका पर हमला कर दिया था. तब कोई योद्धा उसका सामना नहीं कर सका।
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उधर इंद्रप्रस्थ में यज्ञ की समाप्ति पर अपशकुनों का अनुभव करते हुए कृष्ण और बलराम द्वारिका पहुंचे। बलराम को नगर की रक्षा का भार सौंपकर भगवान श्रीकृष्ण युद्ध क्षेत्र में पहुंचे। उन्होंने शाल्व के सैनिकों को क्षत-विक्षत कर दिया। शाल्व घायल होकर अंतर्ध्यान हो गया, लेकिन उन्होंने सुदर्शन चक्र से शाल्व को मार डाला और विमान चूर-चूर होकर समुद्र में गिर गया।
यह वही समय था, जब पांडव जुआ खेल रहे थे और एक-एक कर सारी सम्पत्ति हारते जा रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण युद्ध समाप्त कर लौटे और ज्यों ही सुना कि हस्तिनापुर में दुर्योधन की उद्दण्डता के कारण जुआ खेला जा रहा है और पांडव उसमें सब कुछ हारकर गए हैं, तब तुरंत लौटे, लेकिन जब तक वे वहां पहुंचते, द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। सभा में पहुंचते ही श्रीकृष्ण ने तुरंत द्रौपदी की सहायता की थी। यहां तक की महाभारत के युद्ध में जब अपने सगे-संबंधियों को मैदान में देकखर अर्जुन परेशान हो गए और ये कहा कि वो अपने रिश्तेदारों से युद्ध कैसे कर सकते हैं, तो कृष्ण ने ही उन्हें धर्म और नीति का ज्ञान दिया था।