नई दिल्ली। माउंट एवरेस्ट (Mount Everest)पर हवाई जहाज उड़ान क्यों नहीं भरते हैं। इसके पीछे की वजह है इसकी ऊंचाई और यहां तेजी से बदलने वाला मौसम है। एवरेस्ट पर तूफानी बर्फीली हवाएं (Snow Storm) और जमा देने वाली ठंड भी इसकी वजह है। फ्रांस के एक शख्स को छोड़ दें तो आजतक ऐसी आजमाइश किसी ने नहीं की जो प्लेन उड़ाकर जाए और सीधा माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर उतरे।
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14 मई 2005 को फ्रांस के टेस्ट हेलीकॉप्टर पायलट डिडिएर डेलसला (Didier Delsalle)ऐसी कोशिश की थी। उसके बाद आजतक किसी ने यह काम करने की जहमत नहीं उठाई क्योंकि उन्हें पता है कि कामयाबी के नाम पर उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। फ्रेंच पायलट डिडिएर डेलसला (French pilot Didier Delsalle) ने अगर कोशिश की और वे हेलीकॉप्ट उतार पाए तो इसके पीछे कई साल की ट्रेनिंग और उड़ान का रियाज शामिल है। कई साल की प्लानिंग और एवरेस्ट के मौसमी बदलावों की पूरी स्टडी करने के बाद ही वे सफल हो पाए थे।
अंजाम बहुत भयावह
एक्सपर्ट बताते हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक विमान नहीं उड़ाने के पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह एवरेस्ट का बेहद खराब मौसम है। तूफानी हवाएं हमेशा चलती हैं और हवा का तापमान शरीर गला देने वाला होता है। माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) का तापमान जीरो से बहुत नीचे जाता है। ऐसे में कोई विमान या उसका पायलट कैसे टिक पाएगा? लोग चाहकर भी कोशिश नहीं करते कि क्या पता लौट कर आएं या नहीं। दुनिया में कॉमर्शियल जेट उड़ाने वाले बड़े-बड़े धुरंधर पायलट भी एवरेस्ट पर विमान ले जाने की हिमाकत नहीं करते। इन पायलटों को पता है कि इतनी ऊंची और बेहद खतरनाक चोटियों तक विमान उड़ाने का अंजाम कितना भयावह हो सकता है।
क्या है वजह?
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टिम मॉर्गन (Tim Morgan) नाम के एक कॉमर्शियल पायलट ने ‘क्वोरा’ पर लिखा है, कोई भी विमान 40,000 फीट से ऊपर उड़ान भर सकता है। इस हिसाब से देखें तो माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) की ऊंचाई 29,031.69 फीट है. ऐसे में विमान आसानी से माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) तक उड़ सकते हैं, लेकिन एवरेस्ट के लिए फ्लाइट का रूट इतना खतरनाक है, मौसम में इतनी तेजी से बदलाव होता है, जलवायु इतनी घातक है कि फ्लाइट वहां तक ले जाना मुमकिन जान नहीं पड़ता। जेम्स डुर्डेन बताते हैं कि दुनिया में विमानों की उड़ान के लिए रूट L888 सबसे ज्यादा टेक्निकल माना जाता है। इस रूट पर विमान ले जाने के लिए तकनीकी कुशलता चाहिए। यह रूट माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) के क्षेत्र को पार करता है।
प्लेन क्रैश होगा अंतिम विकल्प
‘क्वोरा’ पर डुर्डेन लिखते हैं कि अचानक एक इंजन खराब हो जाए तो विमान तेजी से नीचे आएगा क्योंकि ज्यादातर प्लेन एक इंजन पर बेहद ऊंचाई पर नहीं उठ पाते हैं। ऐसे विमान 30 से 40 सेकेंड में ही 25,000 फीट तक नीचे आ जाएंगे। हिमालयी क्षेत्र में ज्यादातर चोटियां 25,000 फीट से ऊंची हैं। ऐसे में पायलट को सुरक्षित तरीके से विमान को उतार लेने की क्षमता होनी चाहिए और उसी हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए। एक इंजन खराब हो जाए तो विमान नीचे आएगा और हो सकता है कि वह L888 रूट से बाहर हो जाए।
एयरक्राफ्ट में 20 मिनट का ऑक्सीजन होता है। अगर प्लेन का केबिन प्रेशर नीचे चला जाए तो विमान को उस ऊंचाई पर ले जाना पड़ेगा जहां सांस लेने लायक ऑक्सीजन मिल सके। इसे ड्रिफ्ट डाउन प्रोसीजर कहते हैं। ऐसा तभी होगा जब विमान को किसी नजदीकी पहाड़ों की चोटी पर क्रैश कराया जाए। यह किसी भी प्रकार से सही निर्णय नहीं हो सकता।