Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद वहां खौफ का माहौल है।अफगानिस्तान ( Afghanistan) से देश छोड़ कर बाहर जाने के लिए काबुल हवाई अडडे (Kabul Airport) पर कई हजार की भीड़ जमा है। अफरा तफरी के इस माहौल में वहां हर पल कुछ नया घटित हो रहा है। काबुल हवाई अडडे की हालत चिंताजनक बनी हुई है। नॉर्वे की विदेश मंत्री इने एरिक्सन सोरेइड(Norway’s Foreign Minister Inne Eriksson Soreid) का कहना है कि अफगानिस्तान से लोगों को निकालने की समय सीमा 31 अगस्त से आगे बढ़ाई जानी चाहिए।
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इन हालातों के बीच अफगानिस्तान में पूर्ण रूप से तालिबान का शासन शुरू हो जाएगा लेकिन, सवाल ये है कि क्या दुनिया के बड़े देश तालिबान सरकार को मान्यता देंगे। चीन, रूस और पाकिस्तान लगभग अपना अपनी स्थिति साफ कर चुके हैं। भारत अभी इंतजार करेगा। इस बीच G-7 देशों ने अफगान संकट पर आपात बैठक बुलाई है। G-7 के सभी देशों की होने वाली बैठक में बड़ा फैसला होने की उम्मीद है। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने ये बैठक बुलाई है।
खबरों के अनुसार,जॉनसन ने कहा है कि अफगानी लोगों के हितों की रक्षा के लिए सभी को एकजुट होना होगा। G-7 की बैठक में ये फैसला होगा कि अमेरिका समेत ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली और जापान तालिबान सरकार को मान्यता देगा या नहीं। अगर तालिबान को मान्यता देनी है तो उसका वक्त क्या होगा। इससे पहले अफगानिस्तान में तालिबान का राज 1990 की दशक में आया था। उस वक्त तीन इस्लामिक देशों ने आगे बढ़कर तालिबान सरकार का समर्थन किया था, जिसमें पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात देश शामिल थे। खास बात ये है कि इन तीनों देशों में सुन्नी की जनसंख्या ज्यादा है और अफगानिस्तान भी सुन्नी बहुल देश ही है।
अभी अफगानिस्तान में तैनात सुरक्षा बलों की वापसी को लेकर नई नई खबरें आ रही है। G-7 में सबसे अहम मुद्दा ये भी उठ सकता है कि अमेरिकी फोर्स समेत नाटो की सेना कब अफगान छोड़ेगी। क्योंकि जर्मनी ने अमेरिका से काबुल को छोड़ने की डेडलाइन को बढ़ाने की मांग की है। वहीं, ब्रिटेन और फ्रांस 31 अगस्त की डेडलाइन को बढ़ाने की अपील अमेरिका से पहले ही कर चुके हैं। दो दिन पहले ही तालिबान ने अमेरिका को सीधी चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर अमेरिका और नाटो सेना 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से फुल एंड फाइनल पैकअप नहीं करती है तो उसका परिणाम बहुत बुरा होगा।