नई दिल्ली। चंद्रमा (Moon) पर जीवन नहीं है। वैज्ञानिकों ने अभी तक इसकी उजाड़ सतह पर कभी कोई जीवित चीज़ नहीं पाई गई। फिर भी, पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवन के कुछ रूप, चांद पर जीवन लाने में मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिक चांद पर पौधे उगाकर वहां जीवन की शुरुआत करना चाहते हैं।
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स्टार्ट-अप लूनारिया वन (Lunaria One) के सहयोग से, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) के वैज्ञानिक 2025 तक, चंद्रमा पर पौधे उगाना चाहते हैं। ऑस्ट्रेलियन लूनर एक्सपेरिमेंट प्रोमोटिंग हॉर्टिकल्चर (ALEPH-1) पेलोड, स्पेसिल (SpaceIL) के बेरेशीट 2 (Beresheet 2) लैंडर पर लॉन्च होगा। इज़राइल ने 2020 में अपना पहला मून मिशन असफल होने के तुरंत बाद इस प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। चीन ने भी अपने चेंज 4 (Chang’e 4) लैंडर पर ऐसा ही एक्सपेरिमेंट किया था, जिसमें कपास के बीज सफलतापूर्वक अंकुरित हुए थे।
Seeds launching to the moon in 2025 will test plant resilience https://t.co/KiPxWjPHnl pic.twitter.com/ABkJbpTL8T
— SPACE.com (@SPACEdotcom) October 20, 2022
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इससे पहले कभी भी चंद्रमा पर कुछ भी उगाया नहीं गया है। हालांकि, ALEPH-1 पौधों और बीजों को एक सुरक्षात्मक चेंबर में रखा जाएगा, फिर भी इसमें बहुत सी चुनौतियां सामने आएंगी। चांद पर पानी बहुत कीमती होगा, गुरुत्वाकर्षण कमजोर होगा, दिन और रात दोनों पृथ्वी के 7 दिन तक चलेंगे और वहां का वातावरण कैसा भी हो, हानिकारक सोलर रेडिएशन से सतह को बचा नहीं पाएगा।
ANU के प्लांट बायोलॉजिस्ट और लूनारिया वन की विज्ञान सलाहकार कैटलिन बर्ट (Caitlyn Byrt) ने बताया कि सबसे कठोर वातावरण में पौधों को उगाने के लिए अंतरिक्ष एक असाधारण टेस्टिंग ग्राउंड है। लॉन्च से पहले, एएनयू और लूनेरिया वन के शोधकर्ता वहां ऐसे पौधे ही उगाएंगे जो वहां के वातावरण में उग सकें। इसमें ऑस्ट्रेलियाई घास- ट्रिपोगोन लोलिफोर्मिस (Tripogon loliformis) जिसे resurrection plants के तौर पर जाना जाता है। इस तरह के पौधे बहुत हार्डी होते हैं। लंबे समय तक निष्क्रिय और बिना पानी के रहने के बाद भी ये पौधे दोबारा उगने में सक्षम होते हैं। इन्हें बहुत थोड़ा सा पानी ही चाहिए होता है।
जो पौधे चंद्रमा पर सर्वाइव कर जाएंगे, वे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सांस लेने योग्य ऑक्सीजन दे सकते हैं और कुछ का इस्तेमाल दवा बनाने में भी किया जा सकता है। पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन का सामना कैसे किया जा सकता है, वह भी ALEPH-1 की मदद से जाना जा सकता है। इसके लिए खाने योग्य ऐसे पौधों की प्रजातियां की पहचान करनी होगी, जो बहुत विपरीत वातावरण का सामना कर सकती हैं और सूखे जैसी स्थिति के बाद भी, एक बार फिर आसानी से उग सकती हैं। बर्ट और उनके साथियों का अनुमान है कि बेरेशीट 2 के पहले 72 घंटों में बीजों को पानी देने के बाद, कम से कम कुछ बीज तो अंकुरित हो जाएंगे। इस दौरान, पेलोड नियमित रूप से पृथ्वी पर इस प्रयोग की तस्वीरें भेजेगा।