नई दिल्ली: फिल्म ‘1942 अ लव स्टोरी’ भले ही आर. डी. बर्मन की बतौर संगीतकार आखिरी फिल्म साबित हुई हो। लेकिन आज भी जब हम उनके गानों को सुनते हैं उनकी याद ज़हन में फिर से ताज़ा हो जाती है। साल 1994 में आर. डी. बर्मन इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए, और अपने चाहनेवालों के लिए छोड़ गए अपने फिल्मी संगीत का नायाब तोहफ़ा।
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27 जून 1939 को आर. डी. बर्मन का जन्म कोलकाता में हुआ था। राहुल देव बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन अपने ज़माने के मशहूर संगीतकार थे। उनके जन्म से लेकर मशहूर संगीतकार बनने तक के इस सफर से कई दिलचस्प बाते जुड़ी हैं जिसे हम जानने की कोशिश करेंगे।
आर. डी. बर्मन कैसे बने पंचम दा ?
कहा जाता है कि बचपन में जब भी आर. डी. बर्मन रोते थे, तो सुर की पंचम ध्वनि सुनाई देती थी। इतना ही नहीं वे बचपन में जब भी गुनगुनाते थे, प शब्द का ही इस्तेमाल करते थे। जिससे उन्हे लोग पंचम कहकर पुकारने लगे।
यह बात अभिनेता अशोक कुमार के ध्यान में आई. कि सा रे गा मा पा में ‘प’ पांचवी जगह पर मौजूद है। इसलिए उन्होंने राहुल देव को पंचम नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
पिता से हटकर थी संगीत शैली
आर. डी. बर्मन एक मशहूर संगीतकार के बेटे थे। यही वजह है कि बचपन से ही उन्हे संगीत के प्रति खास लगाव था। पंचम के बनाए धुनों में वेस्टर्न और इंडियन दोनों संगीत का मिश्रण मिलता था। उनकी संगीत की यह शैली उनके पिता से काफी जुदा थी. जिसकी बदौलत पंचम ने भारतीय संगीत में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
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माउथ ऑर्गन बजाने के थे शौकीन
आर. डी. बर्मन को माउथ ऑर्गन बजाने का बेहद शौक था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फिल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथ ऑर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए।
महमूद ने दिया था पहला ब्रेक
फिल्मों में बतौर संगीतकार अपने करियर की शुरूआत पंचम ने 1961 में महमूद की फिल्म ‘छोटे नवाब’ से की थी। इसी फिल्म के ज़रिए महमूद ने पंचम दा को पहला ब्रेक दिया था। हालांकि इस फिल्म के ज़रिए वे अपनी खास पहचान नहीं बना सके।
‘अमर प्रेम’ से मिली बड़ी कामयाबी
आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे कितने प्रभावशाली हैं।
अपने संगीत में करते थे प्रयोग
आर. डी. बर्मन समय से आगे के संगीतकार थे। वे अक्सर अपने संगीत में नए-नए प्रयोग करते थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। वे नई तकनीक को भी बेहद पसंद करते थे। कंघी और कई फालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने संगीत में किया।
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70 के दशक में मचाई धूम
राहुल देव बर्मन द्वारा संगीतबद्ध की गई फिल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। राजेश खन्ना को सुपर स्टार बनाने में भी आरडी बर्मन का अहम योगदान रहा है। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आरडी बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आरडी का संगीत युवाओं को बेहद पसंद आया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था।
फिल्मी अंदाज़ में रचाई थी शादी
पंचम दा की रीता से लव स्टोरी की शुरुआत फिल्मी अंदाज़ में हुई थी। रीता ने अपने दोस्तों से शर्त लगाई थी कि वो पंचम को फिल्मी डेट पर ले जाएंगी और ऐसा हुआ भी। दोनों की ये मुलाकात प्यार में बदल गई और दोनों ने 1966 में शादी कर ली। लेकिन शादी के महज पांच साल बाद दोनों अलग हो गए।
पहली शादी टूटने के बाद आर. डी. बर्मन ने आशा भोसले को साल 1980 में अपना जीवन साथी बना लिया। जिसके बाद दोनों ने कई हिट गाने गानों के ज़रिए फिल्मी दुनिया में तहलका मचा दिया। पंचम दा ने करीब 18 फिल्मों में अपनी आवाज़ भी दी। उन्होने भूत बंगला (1965 ) और प्यार का मौसम (1969) में में अभिनय भी किया था। बहरहाल अफ़सोस की बात तो यह है कि फिल्म ‘1942 अ लव स्टोरी’ में अपनी कामयाबी देखने से पहले ही 55 साल की उम्र में वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।