Birthday Special: भारत में खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न बीतें दिनों काफी चर्चा में था। दरअसल भारत के प्रधानमंत्री (Prime minister Narendra Modi)नरेंद्र मोदी ने इस पुरस्कार का नाम राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से बदल कर हॉकी के पूर्व महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर करने का एलान किया था। अब इस पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार हो गया है। आज मेजर साहब(Mejar sahab) की जयंती होती है। उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी।
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उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन् 1905 ई. को इलाहाबाद(Allahabad) मे हुआ था। वो एक राजपूत परिवार में जन्मे थे ।बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात (janmjaat) नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी।
ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक(magnetic) होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई। जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर(Hitlar) सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा।
वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक(Hockey stick) लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य(Member) रहे ( जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलम्पिक , १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक)। उनकी जन्मतिथि को भारत में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।