लखनऊ। योगी आदित्यनाथ और गोरखपुर के नेता हरिशंकर तिवारी की अदावत काफी पूरानी रही है। क्रमश: राजपूत और ब्राहम्ण चेहरों के अगुवा ये दोनों नेताओं की गिनती यूपी की राजनीति में एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंदियों में होती है। योगी आदित्यनाथ हरिशंकर तिवारी को राजनीतिक प्रतिद्वंदता में काफी पिछे छोड़ चुके हैं। पांच बार गोरखपुर के सांसद रहे योगी क्षेत्र की राजनीति से ऊपर उठकर साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी की सूबे में सरकार बनने पर मुख्यमंत्री बनें। ये तो संगठन की कृपा थी लेकिन आज जब साल 2022 के आम चुनावों में वो अपने चेहरे पर राज्य के मुख्यमंत्री बनके लखनऊ में स्थापित हुए हैं तब से उन्होंने पिछे मुड़ के नहीं देखा।
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आज के समय में हरिशंकर को उन्होंने कोसो दूर छोड़ दिया है। लेकिन हम आपको बता दें कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनकी सहायता के लिए दो उपमुख्यमंत्री भी बनाये गये हैं। वो हैं पिछली सरकार में इसी पद पर रहे केशव प्रसाद मौर्य जबकि उनके साथ उपमुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा की जगह इस बार ब्राहम्ण चेहरे के रुप में पद मिला है कभी बसपा में रहे नेता ब्रजेश पाठक को। बृजेश पिछले योगी सरकार में कानून मंत्री भी थे। बता दें कि कभी बृजेश योगी के जानी दुश्मन रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी के अच्छे मित्र थे। वो भाजपा से पहले बसपा में भी रहे लेकिन उन्होंने योगी सरकार पार्ट 2 में कैसे उपमुख्यमंत्री के पद तक का सफर तय किया ये सवाल काफी रोचक है।
ब्रजेश पाठक को लेकर कहा जाता है कि वह हवा के रुख को अच्छी तरह से भांपने वाले नेता हैं। कभी कांग्रेस में रहे ब्रजेश पाठक ने 2016 में बसपा को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। अब महज 6 साल ही बीते हैं और वह प्रदेश के डिप्टी सीएम बन गए हैं। 1989 में वह लखनऊ यूनिवर्सिटी के उपाध्यक्ष बने थे और फिर 1990 में छात्र संघ अध्यक्ष बन गए थे। कहा जाता है कि इस चुनाव में उनकी पूरी मदद विनय तिवारी ने ही की थी। छात्र जीवन में और फिर राजनीति के शुरुआती दौर में दोनों बेहद करीबी दोस्त थे। ब्रजेश पाठक और विनय तिवारी एक साथ ही बसपा से जुड़े थे। विनय तिवारी ने इस चुनाव के ठीक पहले ही सपा का दामन थाम लिया था।
कभी गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में ब्राह्मण राजनीति का चेहरा रहे हरिशंकर तिवारी औैर उनके परिवार की साख अब पहले जैसी नहीं रही है। वहीं ब्रजेश पाठक को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर ही योगी कैबिनेट में शामिल कर लिया गया है। इससे पहले 2017 में वह उनकी ही सरकार में कानून मंत्री भी बनाए गए थे। हरदोई के मल्लावां के रहने वाले ब्रजेश पाठक के पिता एक होम्योपैथिक डॉक्टर थे। यहीं से उन्होंने 2002 में पहला विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन महज 150 वोटों के अंतर से हार गए थे। इसके बाद उन्होंने हवा का रुख पहचाना और बसपा में शामिल हो गए।
जिससे उन्होंने उन्नाव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली पहुंच गए। उस दौर में मायावती बहुजन से आगे निकलकर सर्वजन की बातें करनी लगी थीं। इस जीत के बाद वह मायावती के करीबी नेताओं में शामिल हो गए थे। 2009 में वह राज्यसभा भी गए, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें एक बार फिर समझ आ गया था कि बसपा के दिन भी अब लद गए हैं। फिर वह 2016 में भाजपा में शामिल हो गए।