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Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 दूसरा इम्तिहान भी सफलतापूर्वक किया पास, ISRO की उम्मीदों पर उतरा खरा

By संतोष सिंह 
Updated Date

बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के ऊपरी कक्षा में पहुंचने की दूसरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। इसरो ने सोमवार को बताया कि अंतरिक्ष यान अब 41603 किलोमीटर X (गुणा) 226 किलोमीटर की कक्षा में है। उसने कहा कि अगला चरण मंगलवार अपराह्न दो बजे से तीन बजे के बीच प्रस्तावित है। इसरो (ISRO) ने 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए ‘चंद्रयान-3’ (Chandrayaan-3)  का सफल प्रक्षेपण किया था। शुक्रवार अपराह्न 2.35 बजे उड़ान भरने के 17 मिनट बाद उपग्रह को उसकी लक्षित कक्षा में प्रवेश करा दिया गया था।

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चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के परियोजना निदेशक पी वीरमुथुवेल ने कहा था कि इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी), बेंगलुरु से अंतरिक्ष यान पर करीबी नजर और नियंत्रण रखेगा। यह चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जिसका अब तक अन्वेषण नहीं किया गया है। केवल तीन देश, अमेरिका, चीन और रूस ही अब तक चंद्रमा की सतह पर उतरने में सफल रहे हैं।

‘चंद्रयान-3’ मिशन 40 दिन के महत्वपूर्ण चरण से गुजरेगा

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर ने कहा कि शुक्रवार को प्रक्षेपित किया गया ऐतिहासिक ‘चंद्रयान-3’ मिशन 40 दिन के महत्वपूर्ण चरण से गुजरेगा और अंतत: चंद्रमा की सतह पर ‘लैंडिंग’ के लिए इसमें लगे ‘थ्रस्टर्स’ की मदद से इसे पृथ्वी से दूर ले जाया जाएगा।

अंतरिक्ष यान की हालत सामान्‍य, अब तक बहुत अच्‍छा प्रदर्शन किया
इसरो ने कहा कि ‘चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3)  मिशन अपडेट जानकारी के अनुसार अंतरिक्ष यान की हालत सामान्य है। कक्षा में आगे बढ़ाने की पहली कवायद ISTRAC/इसरो, बेंगलुरु द्वारा सफलतापूर्वक पूरी की गई। अंतरिक्ष यान अब 41762 किलोमीटर (किमी) गुना 173 किमी कक्षा में है। नायर ने कहा कि यान प्रणाली ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और इसके कारण, अंतरिक्ष यान को जो भी आवश्यक शुरुआती स्थितियां चाहिए थीं, हमने उन्हें बहुत सटीकता से प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि चूंकि प्रयोग का पहला चरण सौ प्रतिशत सफल रहा है और अंतरिक्ष यान भी बहुत अच्छी स्थिति में है तथा यह अपनी प्रणोदन प्रणाली और उपकरणों का उपयोग करके चंद्रमा पर जाने में सक्षम होगा।

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