नई दिल्ली। महाराष्ट्र राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) पर बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ी सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सत्ताधारी दल के विधायकों के बीच मतभेदों के आधार पर विश्वास मत के लिए बुलाना एक निर्वाचित सरकार को गिरा सकता है। ऐसे में, फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए राजनीतिक दलों में असंतोष ही राज्यपाल के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता।
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संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल की भूमिका चिंतित करने वाली
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जून 2022 के दौरान महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के वफादार विधायकों द्वारा शिवसेना की सरकार गिराने से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए की है। कोर्ट ने कहा एक पार्टी के भीतर विधायकों के बीच मतभेद किसी भी आधार पर हो सकता है जैसे कि विकास निधि का भुगतान या पार्टी लोकाचार से विचलन, लेकिन क्या यह राज्यपाल के लिए शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने के लिए पर्याप्त आधार हो सकता है? वे इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं। पीठ ने कहा कि किसी भी राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा। इससे लोग सत्तारूढ़ पार्टी को धोखा देना शुरू कर देंगे और राज्यपाल सत्ताधारी पार्टी को खत्म कर देंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद तमाशा होगा।
महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) द्वारा घटनाक्रम को सुनाने के बाद पीठ ने यह टिप्पणी की। उन्होंने पीठ को बताया था कि राज्यपाल के पास शिवसेना के 34 विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र, निर्दलीय सांसदों का एक पत्र सहित कई ऐसी सामग्रियां थीं जिसने उद्धव ठाकरे सरकार को विश्वास मत साबित करने का आदेश देने के लिए प्रेरित किया था।
विपक्ष के नेता का एक पत्र प्रासंगिक नहीं
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इस पीठ में जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता का एक पत्र इस मामले में मायने नहीं रखता क्योंकि वह हमेशा लिखता रहेगा कि सरकार ने बहुमत खो दिया है या विधायक खुश नहीं हैं। ऐसे में विधायकों का पत्र कि उनकी सुरक्षा को खतरा है, इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।
राज्यपाल को करना चाहिए था सवाल
पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपाल को (शिवसेना) विधायकों से सवाल करना चाहिए था कि वे तीन साल तक कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन में थे और फिर अचानक एक दिन में ऐसा क्या हुआ कि वे गठबंधन से बाहर जाना चाहते थे। बाद में बागी विधायक दूसरी सरकार में मंत्री बने। इससे पहले, दो मार्च को शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा था कि जून 2022 के महाराष्ट्र राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) से संबंधित याचिकाएं राजनीति के दायरे में आती हैं। ऐसे में न्यायपालिका को इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
बता दें कि बीएस कोश्यारी (BS Koshyari) उस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल थे। उन्होंने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का सामना करने के लिए कहा था। हालांकि, फ्लोर टेस्ट में अपनी हार को देख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने इस्तीफा दे दिया था। जिससे एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के लिए मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।