देवगुरु बृहस्पति: देवताओं के गुरु माने जाने वाले देवगुरु बृहस्पति का दिन बृहस्पतिवार भगवान विष्णु जी को समर्पित होता है। सौरमंडल में बृहस्पति का विशेष स्थान है। इन्हें देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त है। देवताओं ने इन्हें अपना मार्गदर्शक, शुभचिंतक और आचार्य के रूप में स्वीकार किया है। देवगुरु बृहस्पति गौरवपूर्ण व्यक्तित्व, न्याय, धर्म एवं नीति के प्रतीक हैं। किसी भी जातक की कुंडली में बृहस्पति बली होने पर उसे चतुर, विज्ञान का विशेषज्ञ, न्याय, धर्म एवं नीति का जानकार, सात्विक प्रवृत्ति वाला बनाता है।
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बृहस्पति देव पीतांबर धारण किये हुए कमल पर आसीन माने जाते हैं। देवगुरु चारों हाथों में क्रमश: रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दंड धारण किये हुए हैं।
विष्णु जी के बीज मंत्र
विष्णु जी के इन बीज मंत्रों में से किसी एक का 108 बार जाप करना बहुत फलदायी होता है। इनमें से प्रथम मंत्र को बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र माना जाता है।
ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।
ॐ गुं गुरवे नम:।
विष्णु गायत्री महामंत्र– ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।
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विष्णु कृष्ण अवतार मंत्र– श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।