नई दिल्ली। केरल के राज्यपाल (Kerala Governor) के तरफ से विधानसभा से पास बिलों पर मंजूरी नहीं दी जा रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यपाल ऑफिस (Governor’s Office) को नोटिस जारी किया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की बेंच ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में तथ्यों के साथ मौजूद रहने को कहा है। अब अगली सुनवाई शुक्रवार 24 नवंबर को होगी।
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केरल सरकार (Kerala Government) ने प्रदेश के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Governor Arif Mohammad Khan) पर विधानसभा से पारित बिलों पर कोई कार्रवाई न करने। इसके साथ ही उन पर सरकार द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को दबाकर बैठे रहने का आरोप लगाया है। केरल राज्य (Kerala State) ने अपनी याचिका में कहा है कि विधेयकों को लंबे समय तक और अनिश्चितकाल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है। राज्य सरकार (State Government) का कहना है कि सरकार के तरफ से राज्य के लोगों के लिए विधानसभा द्वारा कल्याणकारी बिल पारित किए गए हैं। राज्यपाल के तरफ से इन बिलों पर कोई कार्यवाही न करना, जनता को मिले अधिकारों से वंचित करता है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- कुल 15 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित
तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Government) की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने कहा कि कुल 15 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं। 10 बिल राज्यपाल ने लौटा दिए। इन्हें दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजा गया है। CJI ने कहा कि एक बार जब यह दोबारा पारित हो जाता है, तो यह धन विधेयक के समान स्तर पर होता है। सिंघवी ने कहा कि इसमें राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है। सिद्धांत यह है कि यह मनी बिल के बराबर होता है। सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास कार्रवाई के तीन तरीके हैं। वह सहमति दे सकते हैं , असहमति जता सकते हैं या आपत्ति जता सकते हैं। क्या राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा में वापस भेजे बिना उस पर सहमति रोक सकते हैं?