सावन 2021: सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना है। शिव भक्त इस पूरे माह में भगवान भोले नाथ और माता पार्वती की पूजा पूरे मनोयोग से करते हैं। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस पूरे माह में कई तरह के व्रत, उपवास ,त्योहार और मेले का आयोजन होता है। युवतियों और सुहागिन महिलाओं के लिए इस पूरे माह में कई तरह के व्रत और उपवास की महत्वपूर्ण तिथियां पड़ती है। व्रत उपवास की इस श्रृंखला में सुहागिन महिलाओं के लिए अखण्ड सौभग्य बने रहने के लिए हरियाली तीज का विशेष महत्व है। इस बार आज के दिन हरियाली तीज 11 अगस्त दिन बुधवार को मनाई जा रही है। हिंदू पंचाग के अनुसर ये त्योहार सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।
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ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने इस व्रत को किया था। इस दिन महिलाएं निर्जला और निराहार रहकर अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत करती है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस व्रत को करें तो उन्हें मनचाहा पति मिलता है। हरतालिका व्रत रखने के बाद इस दिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं पूरा दिन व्रत रख कर रतजगा भी करतीं है। आज हम बताने जा रहे है कि भगवान श्रीराम ने माता सीता जी का श्रृगार किया था। इस पूरी कथा में विशेष बात ये है कि माता सीता का श्रृगार करने के लिए प्रभु श्रीराम ने स्वंय ही फूलों का आभूषण बनाया। यह बहुत ही मार्मिक कथा है।श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्री रामचरितमानस में इस प्रसंग की रचना की है।अरण्यकांड में श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने प्रुभु श्रीराम चंद्र द्वारा माता सीता के श्रृगार पर चौपाई की रचना रचना की है।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
एक बार सुंदर फूल चुनकर प्रभु श्रीरामचंद्र ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर बैठे हुए प्रभु ने आदर के साथ वे गहने श्री सीताजी को पहनाए।
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इस पूरे प्रसंग की कथा है कि चित्रकृट पर्वत पर वनवास के समय प्रभु श्रीराम, माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ निवास करते थे। वहां स्फटिक शिला एक छोटी सी चट्टान है, जो रामघाट से ऊपर की ओर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। यह ऐसा स्थान माना जाता है जहां प्रभु श्रीराम माता सीता ने श्रृंगार किया था। इसके अलावा, किंवदंती यह है कि यह वह जगह है जहां भगवान इंद्र के बेटे जयंत, एक कौवा के रूप में माता सीता के पैर में चोंच मारी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस चट्टान में अभी भी राम के पैर की छाप है।
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।।
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए।।
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर।।
सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा।।
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा।।
सीता चरन चौंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा।।
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना।।