नई दिल्ली: महाभारत के किस्से तो आपने काफी सुने हैं और पांडवों के बारे में भी आप जानते ही होंगे। यह भी जानते होंगे की गदाधारी भीम कितने बलशाली थे। उनमें 10 हजार हाथियों का बल था। लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर गदाधारी भीम को 10 हजार हाथियों का बल मिला कैसे? कैसे गदाधारी भीम इतने शक्तिशाली बन गए? क्या जन्म से ही उन्हें 10 हजार हाथियों का बल मिला था? या फिर बाद में किसी ने उन्हें वरदान दिया? या कुछ और? चलिए आज हम चर्चा करेंगे कि पांडुपुत्र भीम को 10 हजार हाथियों का बल कैसे मिला और किसने दिया…
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हस्तिनापुर के राजा पांडु के 5 पुत्र थे, जिन्हें हम सब पांडव के नाम से जानते हैं। ये पांचो पांडव वैसे तो पांडू के पुत्र कहे जाते हैं। लेकिन वास्तविक में यह 5 अलग-अलग देवताओं के पुत्र थे। युधिष्ठिर भगवान धर्मराज के पुत्र थे, अर्जुन देवराज इंद्र के पुत्र थे, और नकुल – सहदेव के पिता अश्विनी कुमार थे. तो वहीं गदाधारी भीम वायुदेव के पुत्र थे।
बचपन से ही भीम काफी शक्तिशाली थे। कहते हैं कि भीम जब 3-4 महीने के ही थे तो एक दिन माता कुंती बालक भीम को गोद में लेकर आश्रम में ही पांडु के साथ बैठी थी कि इतने में आश्रम के नजदीक एक बाघ आते हुए दिखा। जिसे देख माता कुंती काफी भयभीत हो गई थी और डर के मारे उठ खड़ी हुई। उन्हें इस बात का ध्यान नहीं रहा कि उनकी गोदी में बालक भीम है। जिस कारण भीम कुंती की गोद से नीचे गिर गए और एक चट्टान पर जा गिरे। चट्टान पर गिरने के बाद भी बालक भीम को कुछ नहीं हुआ। लेकिन वह चट्टान कई टुकड़ों में टूट गया।
किंदव ऋषि ने दिया था श्राप
इसे देख राजा पांडु और माता कुंती को बहुत आश्चर्य हुआ वैसे आप सब यह तो जानते ही होंगे कि राजा पांडु को किंदव ऋषि ने श्राप दिया था। दरअसल बात उस वक्त की है जब राजा पांडु शिकार खेलने किसी वन को गए हुए थे। जिस वन मे राजा पांडु शिकार खेल रहे थे, उसी वन में किंदव ऋषि अपनी पत्नी के साथ हिरण योनि में मैथुन क्रिया कर रहे थे। राजा पांडु को इस बात का एहसास नहीं था। शिकार के लिए जैसे ही उन्होंने तीर चलाया वह तीर सीधे किंदव ऋषि को लग गया। जिसकी वजह से ऋषि की मौत हो गई। लेकिन मृत्यु से पहले ऋषि किंदव ने राजा पांडु को यह श्राप दे दिया की जिस अवस्था में तुमने मुझे मारा है, उसी अवस्था में जब तुम भी रहोगे तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
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जिसके बाद उदास और चिंतित राजा पांडु अपने महल गए और ऋषि के श्राप के कारण राजा पांडु ने अपने नेत्रहीन भाई धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर की गद्दी सौंप दी और खुद सन्यास ले लिया। सन्यास लेकर जब राजा पांडू आश्रम जा रहे थे तो उनकी दो पत्नियां कुंती और माद्री भी उनके साथ चली गई।
कहते हैं 1 दिन राजा पांडु के मन में काम भाव जाग उठा और उन्होंने अपनी पत्नी माद्री के मना करने के बाद भी सहवास किया। और फिर किंदव ऋषि के श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई। तब माद्रीे भी अपने पति के साथ चिता पर सती हो गई।
इसके बाद कुंती अपने पांचों पुत्रों को लेकर हस्तिनापुर चली गई। हस्तिनापुर में कौरव और पांडव भाई सब साथ-साथ हीं खेला करते थे। लेकिन खेल-खेल में भीम कौरव भाइयों को बहुत मारते थे। जिस कारण सभी भाई भीम से परेशान हो गए थे। इसलिए एक दिन दुर्योधन ने भीम के खाने में जहर मिला दिया। जिस वजह से भीम अचेत हो गए थे। और इसी अचेत अवस्था में दुर्योधन ने भीम को बंधवाकर गंगा नदी में फिकवा दिया। बेहोश भीम नदी में ही नागलोक जा पहुंचा।
कहते हैं वहाँ नागों ने भीम को मार डालने की काफी कोशिश की। उन्हें डसना शुरु कर दिया। लेकिन भीम के शरीर के अंदर पहले से हीं जहर था। नागों के इस प्रकार डसने से भीम के जहर का असर खत्म हो गया और भीम को होश आ गया। जैसे ही भीम को होश आया उसने अपने चारों ओर नागों को देख सब को मारना शुरू कर दिया। कई नागों के मर जाने के बाद बाकी के नाग घबरा कर भाग गए। और जाकर सारी बात नागराज वासुकी को बताई। जिसके बाद नागराज अपने साथियों के साथ भीम के पास आए। नागराज वासुकी के साथ आर्यक नाम के नाग भी थे, जो रिश्ते में भीम के नाना के नाना थे। वैसे तो भीम उन्हें नहीं जानते थे। लेकिन आर्यक ने भीम को पहचान लिया और उन्होंने वासुदेव से आग्रह कर नागलोक के उन कुंडों का जल भीम को पिलवाया जिसे पीने से हजारों हाथियों का बल प्राप्त हो जाता था।