धूप की धूनी : हिन्दू धर्म पूजा-पाठ में, घर में धूप और दीप जलाने का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। धूप कई प्रकार से दी जाती है। धूप के बिना कोई भी पूजा पूरी ही नहीं होती। पूजा स्थल पर धूप जलाने से वातावरण में सकारात्मकता आती है। इससे वहां की समस्त नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं और माहौल खुशनुमा हो जाता है। ऐसे में भक्त बड़ी आसानी के साथ भगवान की भक्ति में अपना मन लगा पाते हैं।
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माना जाता है कि घूप जलाने से घर में बने सकारात्मक वातावरण का असर परिवार के विद्यार्थियों पर भी पड़ता है। बच्चे बड़ी ही एकाग्रता के साथ अपनी पढ़ाई-लिखाई में मन लगा पाते हैं जिससे उनकी काफी तरक्की होती है। धूप देने से मन को शांति और प्रसन्नता मिलती है। साथ ही, मानसिक तनाव दूर करने में भी इससे बहुत लाभ मिलता है।
तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। इनकी धूनी देने से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है।
मदरत्न के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इस धूप को देने से घर में शांति रहती है।
गुड़ और घी की धूप
सर्वप्रथम एक कंडा जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दें और उसके आस-पास अंगुली से जल अर्पण करें। अंगुली से देवताओं को और अंगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है।