नई दिल्ली। आज अंतराष्ट्रीय चाइल्ड अब्यूज एंड इलीगल ट्रैफिकींग डे है। आज हम बात करेंगे किसी के द्वारा प्रताड़ित किये गये बच्चों की। जिन्होंने यातनाएं झेल अपना बचपना लगभग खो दिया। बच्चे जो भगवान का रुप होते हैं। वो अपने जीवन के शायद सबसे खूबसूरत समय किशोराअवस्था में जी रहे होते हैं। उन्हें दुनिया के बारे में भी अच्छे तरीकें से जानकारी नहीं होती ना वो दुनियादारी जानते हैं। ऐसे में कई बच्चों को इसी धरती पर कई प्रकार की यातनाएं उसी सुनहरे काल में झेलनी पड़ती है।
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केस — ग्वालियर के रहने वाले दस साल के एक बालक को कुछ लोग बहला फुसलाकर रेलवे स्टेशन पर लेकर आए थे। यहां पर उससे जबरन भीख मंगवाई जाती थी। भीख न मांगने पर बालक को यातनाएं दी जाती थीं। उसके हाथों को जला दिया गया था। बालक गिराेह के चंगुल से भाग निकला था। आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचा था। वहां उसे रेलवे पुलिस ने भटकता देख आश्रय गृह भेज दिया। बालक ने काउंसिलिंग के दौरान अपने साथ होने वाले अत्याचार की जानकारी दी। सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने पुलिस के साथ मिलकर बालक को घर भेजने की व्यवस्था कराई। मगर, बालक को भीख मांगने के लिए मजबूर करने वालों का पता नहीं लगाया जा सका।
केस — शहर के एक थाना क्षेत्र में रहने वाली बालिका के माता-पिता की मौत हो चुकी है। वह अपने चाचा-चाची के साथ रहती है। घर के सामने रहने वाला युवक उसे कई महीने से परेशान कर रहा था। इससे बालिका मानसिक तनाव में आ गई। वह अपने ही घर में डरी और सहमी रहने लगी। इससे आरोपित का दुस्साहस बढ़ता गया, बालिका को दहशत में देखकर वह आनंदित होता। बालिका की हालत देख उसकी एक सहेली ने चाइल्ड हेल्प लाइन की मदद ली। चाइल्ड लाइन द्वारा बालिका की मदद की गई। उससे और स्वजन से बातचीत करके पूरे मामले की जानकारी दी। इसके बाद बालिका को डर से मुक्ति मिल सकी।