नई दिल्ली। भारतवर्ष में कई ऐसे महान राजा हुए जिनके पराक्रम की मिसाल दी जाती है और उनके जैसा दूसरा कोई राजा नहीं हुआ। उन्हीं में से एक थे मांधाता, जिन्हें इंद्र ने पाला था। रोचक बात ये है कि मांधाता (King Mandhata) अपनी मां के गर्भ से नहीं, बल्कि अपने पिता के गर्भ से पैदा हुए थे। ये कहानी उस ‘गर्भवती राजा’ (Pregnant King) की है जो भगवान राम के पूर्वज थे। भागवत पुराण (Bhagavata Purana) के नवम स्कन्ध (Ninth Canto) के छठे अध्याय में उनका जिक्र है। आप इन राजा के बारे में शायद ही जानते होंगे। इनका नाम था युवनाश्व जो भगवान राम के पूर्वजों में से एक थे। आज आपको भगवान राम के पूर्वजों के बारे में भी गहराई से बताएंगे।
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महाभारत से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं, जिनके बारे में लोगों को या तो कम पता है या फिर जानकारी ही नहीं है। कई बार ऐसी कहानियों को लेकर लोग आपस में उलझ भी जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है राजा युवनाश्व की। मशहूर लेखक देवदत्त पटनायक ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में इनकी कहानी साझा की है। एक ऐसे राजा, जिन्होंने पुरुष होते हुए भी गर्भधारण किया और फिर स्वयं ही बच्चे को जन्म भी दिया।
सोशल मीडिया साइट इंस्टाग्राम पर इस पोस्ट में देवव्रत राजा युवनाश्व की कहानी सुनाते हैं। वह बताते हैं, रामायण में राजा दशरथ की ही तरह, महाभारत में युवनाश्व को भी उत्तराधिकारी न होने को लेकर चिंता थी। इसी की वजह से उन्होंने भी राजा दशरथ की तरह पुत्र के लिए यज्ञ करवाया। यज्ञ के बाद उन्हें भी एक पवित्र द्रव्य चरु दिया गया, जिसे उन्हें अपनी पत्नी को पिलाना था, लेकिन समय का खेल ऐसा हुआ की वह जंगल में भटक गए और प्यास की वजह से उन्होंने वही पानी पी लिया। इसके बाद जो हुआ वह आधुनिक दृष्टि से कल्पना जैसा लगता है, लेकिन युवनाश्व को गर्भ ठहर गया। पटनायक के मुताबिक, गर्भ राजा के अंदर भी सामान्य स्थिति में रहा। प्रसव का समय निकट आने लगा तो राजा कि चिंता हुई की आखिर यह कैसे होगा? इसके बाद उन्होंने देवताओं का आह्वान किया। महाराभारत कथा के मुताबिक या तो देवराज इंद्र ने या फिर अश्वनीकुमार ने राजा की जांघ से उस बच्चे का जन्म करवाया। कथा के अनुसार उस बालक का नाम मंधाता रखा गया।
राजा की बात यहीं खत्म नहीं हुई। पटनायक के मुताबिक पैदा होने के बाद बालक दूध के लिए रोने लगा, लेकिन राजा उसकी भूख को मिटाने में अक्षम था। इस अवस्था में देवराज इंद्र आगे आए और उन्हें समझाया कि देवताओं की नसों में रक्त नहीं, बल्कि दूध प्रवाहित होता है। इसके बाद इंद्र ने अपना अंगूठा काटा और बच्चे को दूध पिलाया। पटनायक इस कथा के अंत में कहते हैं कि शायद यही वजह है कि आज भी छोटे बच्चे अपना अंगूठा चूंसते हैं। मानों उन्हें दूध की उम्मीद हो।
पटनायक की इस पोस्ट के आते ही सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बाढ़ सी आ गई। एक यूजर ने लिखा कि क्या सच में यह संभव है? वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, महाभारत में एक पुरुष ने गर्भ धारण किया था। एक और यूजर ने लिखा कि प्राचीन ग्रंथों में ऐसे विचार मौजूद थे, जिन पर आधुनिक समाज आज भी बहस करता है। इतने प्रोग्रेसिव धर्म का लोगों ने तमाशा बना रखा है। महाभारत के नारद पुराण और वन पर्व में इस घटना का उल्लेख मिलता है।
भागवत पुराण के नवम स्कन्ध के छठे अध्याय में इक्ष्वाकु के वंश का वर्णन मिलता है, इसके साथ ही मांधाता की कहानी का भी उल्लेख किया गया है। उनकी कहानी को जानने से पहले, आपको भगवान राम के पूर्वजों (Ancestors of Lord Rama) के बारे में जान लेना चाहिए, क्योंकि भी वो भी हमारे स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं।
ये है भगवान राम की वंशावली
ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप। इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए. जब विवस्वान हुए तभी से सूर्यवंश का आरंभ माना जाता है। विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम (नाभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल (Who is the ancestor of Rama) में हुआ था।
इक्ष्वाकु के पुत्र थे कुक्षि, कुक्षि के पुत्र विकुक्षि थे। विकुक्षि के पुत्र बाण, बाण के पुत्र अनरण्य हुए. अनरण्य से पृथु, पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ और त्रिशंकु के पुत्र ‘धुन्धुमार’। इसी वंश में राजा दिलीप हुए जिनके पुत्र भगीरथ थे। भागीरथ ने ही कठोर तप कर मां गंगा को धरती पर उतारा था। भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ, ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुये। रघु बहुत पराक्रमी और तेजस्वी राजा थे और उनका प्रताप अत्यधिक था जिसकी वजह से इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा। इस कुल में आगे चलकर अज का जन्म हुआ और अज के पुत्र दशरथ हुए। राजा दशरथ ने अयोध्या पर राज किया। उनके चार पुत्र हुए श्री रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न. श्री रामचंद्र के दो पुत्र लव और कुश हुए। इस प्रकार भगवान राम का जन्म ब्रह्राजी की 67वीं पीढ़ी में हुआ। पर आज हम इस कुल में ही जन्मे राजा युवनाश्व के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे।
पुराण में मिलती है राजा युवनाश्व की कहानी
भागवत पुराण के अनुसार राजा युवनाश्व (King Yuvanashva) संतानहीन थे। इस बात से दुखी होकर वो अपनी 100 पत्नियों के साथ वन में चले गए। वहां ऋषियों ने पुत्र प्राप्ति के लिए राजा युवनाश्व और उनकी पत्नियों के साथ भगवान इंद्र का यज्ञ करवाया। एक दिन राजा युवनाश्व को रात के वक्त बहुत तेज प्यास लगी। वो यज्ञशाला में गए पर वहां उन्होंने देखा कि सारे ऋषि सो रहे हैं। ऋषियों को नींद से उठाना राजा को ठीक नहीं लगा। मगर उन्हें प्यास बहुत तेज लगी थी और जब पानी मिलने का और कोई जरिया उन्हें नहीं मिला तो उन्होंने यज्ञ में रखे एक कलश से ही जल पी लिया। उन्हें नहीं पता था कि उस पानी को मंत्रों से अभिमंत्रित कर रखा गया है। जब सुबह ऋषि उठे तो वो ये देखकर चौंक गए कि यज्ञ में रखे कलश के अंदर जल ही नहीं है। उन्होंने सबसे पूछा कि पुत्र उत्पन्न करने वाला जल आखिर किसने पी लिया। जब उन्हें मालूम चला कि भगवान की प्रेरणा से खुद राजा युवनाश्व ने उस जल को पी लिया तो उन्होंने भगवान को प्रणाम किया। इस जल को पीने की वजह से राजा युवनाश्व ने गर्भ धारण कर लिया।
पिता ने दिया पुत्र को जन्म, इंद्र ने पिलाया दूध
जब 9 महीने बाद प्रसव का वक्त आया तो युवनाश्व की दाहिनी कोख फाड़कर एक चक्रवर्ती पुत्र पैदा हुआ। वो बेहिसाब रो रहा था जिससे ऋषि चिंतित हो गए और उन्होंने कहा कि बालक दूध के लिए रो रहा है, वो किसका दूध पिएगा? तब समस्या का निवारण करने के लिए इंद्र आगे आए। उन्होंने कहा- “मेरा पिएगा (मां धाता) बेटा! तू रो मत!” ये कहकर उन्होंने बच्चे के मुंह में अपनी तर्जनी उंगली डाल दी. इस तरह बच्चे का नाम पड़ा ‘मान्धाता’ जिसका मतलब होता है- ‘(मां के न होने पर) मेरे द्वारा धारण किया’। ऐसा इसलिए क्योंकि उसको इंद्र ने पाला।
मांधाता का नाम पड़ा ‘त्रसदस्यु’!
भागवत पुराण के अनुसार मांधाता पराक्रमी और चक्रवर्ती राजा बने। उन्होंने अकेले ही पूरी धरती पर राज किया। जहां से सूर्य का उदय होता है और जहां वो अस्त होता है, वहां का सारा भूभाग युवनाश्व के बेटे मांधाता के ही अधीन था। वो आत्मज्ञानी थे, उन्होंने दक्षिणा वाले बड़े-बड़े यज्ञ करवाए जिनके जरिए उन्होंने प्रभु की आराधना की। वो इतने शक्तिशाली हुए कि उनसे रावण तक डरता था! इसी वजह से इंद्र ने उनका नाम ‘त्रसदस्यु’ रखा क्योंकि वो ‘दस्युओं’ मतलब लुटेरों (यहां लुटेरों से अर्थ है बुरे लोग) के लिए काल के समान थे। उनसे बुरे लोग बेहिसाब डरते थे।