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Lord Jagannath हुए क्वारंटाइन के इलाज में जुटे वैद्य,आम के रस के सेवन से बिगड़ा स्वास्थ्य

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। मौसम परिवर्तन से अक्सर लोग घरों में बीमार पड़ जाते हैं। इसके बाद उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है, लेकिन अगर आपसे यह कहा जाए कि मंदिर में मौजूद भगवान भी बीमार हो चुके हैं, जिनका इलाज भी वैद्यजी के द्वारा किया जा रहा है, तो आपको भी यह सुनकर आश्चर्य होगा। भगवान के बीमार होने का कारण भी आम रस है, जिसका सेवन करने से भगवान का स्वास्थ्य बिगड़ा है। जी हां! यह बिलकुल सच है और ये कोटा में हुआ है ।

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भगवान हैं बीमार , नहीं बजेंगी मंदिर में  घंटियां

कोटा के रामपुरा इलाके में स्थित भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath)  मंदिर में भगवान इन दिनों बीमार हो गए हैं। भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath)  का इलाज करने के लिए वैद्यजी हर रोज मंदिर पहुंचते हैं। इतना ही नहीं, भगवान का स्वास्थ्य बिगड़ा होने के चलते मंदिर में किसी भी प्रकार के शोर-शराबे पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा हुआ है। यहां तक कि मंदिर में लगी घंटियों और सभी दरवाजों व खिड़कियों को बांधकर रखा गया है ताकि किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो सके। मंदिर में भगवान के दर्शन बंद कर दिए गए हैं, केवल पुजारी और वैद्यजी को ही इलाज हेतु सुबह-शाम भगवान तक पहुंचने की इजाजत है। भगवान जगन्नाथ का इलाज इसी तरह 15 दिनों तक लगातार होगा और 15 दिनों तक के लिए भगवान क्वॉरेंटाइन रहेंगे।

200 किलो आम के रस के भोग के बाद हुए बीमार

मंदिर पुजारी कमलेश दुबे (Temple Priest Kamlesh Dubey) ने बताया कि पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद 200 किलो आम के रस का सेवन करने से मंदिर में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath)  बीमार हो गए हैं। जिसका इलाज वैद्यजी के द्वारा किया जा रहा है। साथ ही भगवान जब थक जाते हैं तो उन्हें आराम की सख्त जरूरत होती है। इस दौरान इनकी बच्चों की तरह सेवा करनी पड़ती है। पुजारी का कहना है कि ये सब परंपरा का हिस्सा है। सामान्य वर्ष में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath)  के शयनकाल का समय 15 दिन का रहता है। उन्होंने बताया इसी माह में आधा घंटे के लिए भगवान के सिंहद्वार में विराजित दर्शन देंगे। जिसके बाद मंदिर में हवन और शुद्धिकरण किया जाएगा।

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सालों पुराना मंदिर में  चली आ रही परंपरा

पुजारी कमलेश दुबे का कहना है कि यह मंदिर करीब 350 साल पुराना रियासत कालीन है। दरअसल हाड़ौती के लोग आर्थिक स्थिति की वजह से हजारों किलोमीटर दूर जगन्नाथ पुरी मंदिर (Jagannath Puri Temple) में दर्शन करने नहीं जा पाते। इसलिए उस समय के राजा पूरी से ही भगवान की प्रतिमा लेकर कोटा आए थे और उसकी रामपुरा में स्थापना कर दी। तभी से यह परंपरा निभाई जाती है। कमलेश दुबे (Kamlesh Dubey)का कहना है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को कभी भी पूरी जाने की कमी महसूस नहीं होती है।

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