Motivation : दिन कितना ही बड़ा हो बीत जाता है। इसी तरह हर रात भी कितनी लंबी हो बीत जाती है। यह जो बीतना है यह किसी के अधीन नहीं है। यह एक चक्र है जो चलता ही रहता है। इस चक्र का कोई पड़ाव नहीं है। चलने में पड़ाव मानव निर्मित है। सभ्यता के विकास के क्रम में मानव ने यह समझा कि वह चक्कर के साथ नहीं चल सकता, क्योंकि चक्र की गति बहुत तीव्र है।अधिक तीव्रता मानव के लिए दुष्कर है। इसे साधने के लिए ऋषि मुनियों ने घोर तपस्या की तब वह कुछ तीव्रता को साध पाए। साधना का महत्व है। आदिकाल में भी था और आज भी है। आज साधना की आवशकता अधिक हो गई है। जीवन शैली की बदलती व्यवस्था में पड़ाव का स्थान कम हो गया है। आज पड़ाव को साधने की आवश्यकता सर्वाधिक हो गयी है।
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आधुनिक जीवनशैली में पड़ाव की व्यवस्था को पुनर्जीवित , पुनर्स्थापित करने की तकनीक विकसित करना आज की प्राथमिकता है। मानव शक्तियों को समय चक्र के साथ चलाने के लिए रात दिन के पड़ाव का पालन करना होगा। आइये अपने दिनचर्या का पड़ाव निश्चित करें।