लखनऊ। पिछले चुनावों में भाजपा के सहयोगी रहे सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर इस बार समाजवादी पार्टी के मंचों पर नजर आ रहे हैं। सिर्फ नजर ही नहीं आ रहे अभी तक हुए जनसभाओं में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मिलकर अगामी विधानसभा चुनाव में वर्तमान सत्ताधारी पार्टी को सरकार से उखाड़ फेंकने का दावा करते भी नजर आ रहे हैं। आखिर कितनी है ओमप्रकाश की क्षमता जिसके बल पर वो मोदी और योगी जैसे लोकप्रिय नेताओं के नेतृत्व वाली पार्टी को मात्र 50 सीटों पर समेटने की बात करते नजर आ रहे हैं।
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बता दें कि उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में ओमप्रकाश राजभर का प्रभाव माना जाता है। इसके अलावा अवध क्षेत्र में भी राजभर की पार्टी का कुछ प्रभाव है। राजभर समुदायों की आबादी यूपी में 3 फीसदी मानी जाती है। हालांकि समुदाय के नेताओं का दावा है कि उनकी आबादी 4.5 फीसदी है। खुद को श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव राजभर का वंशज बताने वाले इस समुदाय को भाजपा ने बीते कुछ सालों में काफी प्रमोट किया है। गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोट की अपनी रणनीति के तहत भाजपा ने इस समुदाय पर दांव चला है।
लेकिन समुदाय के असली नेता होने का दम ओमप्रकाश राजभर भरते रहे हैं। बहुतायत में खेती बाड़ी, पशुपालन करने वाले इस समुदाय की चर्चा इस चुनाव में काफी ज्यादा देखने को मिल रही है। पूर्वी यूपी के बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़, बस्ती जिलों में इस समुदाय का प्रभाव दिखता है। इसके अलावा अवध के रायबरेली, सुल्तानपुर, गोंडा, बहराइच जैसे जिलों में इस समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। दरअसल सुभासपा ने भाजपा सरकार से मांग की थी कि समुदाय को ओबीसी रिजर्वेशन के तहत अलग से लाभ मिलना चाहिए।
राजभर का आरोप था कि इस कैटिगरी के तहत यादव, कुर्मी और राजभरों के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इस पर भाजपा ने जस्टिस रोहिणी पैनल का गठन भी किया, लेकिन इसका समय बढ़ता गया। दरअसल भाजपा का मानना है कि ऐसा कुछ भी होने पर जाट, कुशवाहा और कुर्मी समुदाय के लोगों में गुस्सा देखने को मिल सकता है। ऐसी स्थिति में भाजपा ने सुभासपा से अलग होकर ही लड़ने का फैसला लिया।