नई दिल्ली। पंजाब में विधान सभा चुनावों (Punjab Assembly Elections 2022) से पहले मंगलवार को सत्ताधारी कांग्रेस (Congress) पार्टी को बड़ा झटका लगा है। उसके दो विधायकों ने बीजेपी का झंडा थाम लिया है। उनमें से एक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद प्रताप सिंह बाजवा (MP Pratap Singh Bajwa) के छोटे भाई फतेह जंग सिंह बाजवा (Fateh Singh Bajwa) हैं। फतेह सिंह बाजवा (Fateh Singh Bajwa) कादियां से विधायक हैं। अब इस निर्वाचन क्षेत्र में दोनों भाईयों के बीच चुनावी लड़ाई देखने को मिल सकती है। (Pratap Singh Bajwa) प्रताप सिंह बाजवा कथित तौर पर यहां से चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक हैं।
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हाल ही में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Punjab Congress President Navjot Singh Sidhu) ने फतेह बाजवा को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया था। हालांकि इस घोषणा के तुरंत बाद, प्रताप सिंह बाजवा ने भी स्पष्ट कर दिया था कि उनकी भी उसी सीट पर दिलचस्पी है। सूत्रों का कहना है कि यह अनुमान लगाते हुए कि वह अपने बड़े भाई से चुनावी रेस हार सकते हैं, फतेह जंग बाजवा ने बीजेपी (BJP) में शामिल होने का विकल्प चुना है।
बीजेपी (BJP) में शामिल होने वाले दूसरे कांग्रेस विधायक बलविंदर सिंह लड्डी हैं जो हरगोबिंदपुर से विधायक हैं। इनके अलावा अकाली दल के पूर्व विधायक गुरतेज सिंह गुढियाना (Former Akali Dal MLA Gurtej Singh Gudhiana) , यूनाइटेड अकाली दल के पूर्व सांसद राजदेव सिंह खालसा (Former United Akali Dal MP Rajdev Singh Khalsa) और पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab Haryana High Court) के सेवानिवृत्त एडीसी और एडवोकेट मधुमीत भी बीजेपी (BJP) में शामिल हो गए।
पंजाब में बीजेपी, जो कुछ महीनों पहले तक अकाली दल (Akali Dal) की सहयोगी पार्टी की भूमिका निभाती रही थी, ने राज्य में अपना दांव बढ़ाया है और अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनावों में प्रसार की योजना बना रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि चुनाव से पहले कांग्रेस (Congress) और अकाली दल (Akali Dal) के और नेता बीजेपी (BJP) में शामिल हो सकते हैं।
बीजेपी (BJP) ने कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेता अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और सुखदेव सिंह ढींढसा (Sukhdev Singh Dhindsa) के साथ गठबंधन किया है। अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने पिछले महीने पांच दशक पुराने कांग्रेस से अपने रिश्ते को तोड़ दिया और अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस लॉन्च की है। तीनों कृषि कानून पारित होने के बाद पिछले साल अकाली दल ने भी बीजेपी से अपने रिश्ते तोड़ लिए थे।