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राहुल गांधी की संसद सदस्यता नियमों के तहत नहीं हुई रद्द, लोकसभा के पूर्व महासचिव बोले- राष्ट्रपति से बिना पूछे फैसला लेना गलत

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। सूरत  सेशन कोर्ट (Surat Sessions Court) ने बीते 23 मार्च, 2023 को मानहानि से जुड़े एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुना दी। अगले ही दिन 24 मार्च को लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat) ने इस फैसले को आधार बनाकर राहुल की संसद सदस्यता रद्द कर दी। लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  की इस कार्रवाई पर विपक्षी दल तो सवाल उठा रहे हैं। तो वहीं कांग्रेस की लीगल टीम इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में है।

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इसी बीच लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य (Former Secretary General of Lok Sabha PDT Acharya) ने मीडिया को इंटरव्यू दिया है। पीडीटी आचार्य (PDT Acharya)  ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। बता दें कि लोकसभा का महासचिव देश के सबसे बड़े अफसर कैबिनेट सेक्रेटरी के लेवल की रैंक (Cabinet Secretary level rank) है। ये केंद्र सरकार में सबसे बड़ा अधिकारी होता है।

राहुल गांधी की संसद सदस्यता मामले को ठीक से समझना होगा

पीडीटी आचार्य (PDT Acharya) ने कहा कि किसी संसद सदस्य की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8(3) के तहत रद्द की जाती है। इस नियम के तहत जब सदस्य को किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे 2 साल या उससे ज्यादा सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता रद्द की जाती है। उन्होंने कहा कि नियम के तहत, जिस दिन सदस्य को दोषी ठहराया गया है, उसी दिन से सदस्यता रद्द की जा सकती है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी इसी सेक्शन के तहत रद्द की गई है, लेकिन इसे ठीक से समझना होगा।

सजा पाए सांसद के लिए सेक्शन 8(3) में लिखा है- ‘He/She shall be disqualified’ यानी ‘अयोग्य करार दिया जाएगा।’ ये नहीं है कि ‘He/She shall stand disqualified’, जिसका मतलब होता कि जैसे ही जज ने दोष साबित होने के फैसले पर दस्तखत किए, उसी वक्त से संसद सदस्य अयोग्य घोषित हो गया। ‘He shall be disqualified’ का मतलब हुआ कि कोर्ट के फैसले से किसी की संसद सदस्यता नहीं जाएगी, कोई अथॉरिटी उसे अयोग्य घोषित करेगी। सांसद के अयोग्य होने का आदेश कोर्ट में दोष साबित होने की तारीख से ही लागू माना जाएगा।

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जज ने सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया, तो अयोग्य करार दिए जाने का कोई मतलब ही नहीं था

पीडीटी आचार्य (PDT Acharya) ने इस फैसल पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि ये फैसला मुझे भी सही नहीं लगा। दोष साबित होने से ही संसद सदस्य को अयोग्य नहीं ठहराया जाता है। दोषसिद्धि के साथ 2 साल या उससे ज्यादा सजा हो, तभी सदस्यता जाती है। जज ने सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया, तो अयोग्य करार दिए जाने का कोई मतलब ही नहीं था। कानून के नजरिए से इस फैसले में खामियां दिखाई देती हैं।

पीडीटी आचार्य (PDT Acharya) ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 के सेक्शन 8 (3) में लिखा है कि ‘He shall be disqualified’ इसका अर्थ हुआ कि कोई अथॉरिटी ही सदस्य को अयोग्य ठहराएगी। ये अथॉरिटी कौन है, ये समझने के लिए हमें संविधान के आर्टिकल-103 को देखना होगा।

जब भी किसी संसद सदस्य की सदस्यता पर सवाल उठता है तो राष्ट्रपति  चुनाव आयोग की राय पर फैसला करेंगे

आर्टिकल-103 के मुताबिक, जब भी किसी संसद सदस्य की सदस्यता पर सवाल उठता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति ही इस पर फैसला करेंगे। राष्ट्रपति भी फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग से पूछेंगे और चुनाव आयोग की राय पर राष्ट्रपति फैसला करेंगे।इसका मतलब है कि जब कोई विवाद की स्थिति होगी, तब राष्ट्रपति इसमें दखल देंगे। आर्टिकल-102 में बताया गया है कि किन-किन आधारों पर किसी सांसद की संसद सदस्यता जा सकती है, इसमें बताया गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत, जिस भी सदस्य की सदस्यता रद्द की जाएगी, उस पर राष्ट्रपति ही फैसला लेंगे।

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पूरे केस में लोकसभा सचिवालय ने ही फैसला ले लिया है, ये उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर

पीडीटी आचार्य ने कहा कि साफ है कि फैसला लेने में गड़बड़ी हुई है। लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  ने राष्ट्रपति के पास सुझाव के लिए ये केस भेजा ही नहीं। इस मामले में लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  डिसीजन अथॉरिटी नहीं है। सचिवालय को राष्ट्रपति को केस के बारे में बताना चाहिए था कि राहुल गांधी मानहानि के केस में दोषी पाए गए हैं और उन्हें दो साल की सजा हुई है, क्या ऐसे मामले में राहुल गांधी की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए या नहीं? इसके बाद राष्ट्रपति का फैसला आने के बाद ही लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  नोटिस जारी कर सकता था। पूरे केस में लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  ने ही फैसला ले लिया है, ये उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

लोकसभा सचिवालय का फैसला संविधान के मुताबिक नहीं , इसे बिल्कुल कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती 

क्या ये राजनीतिक दबाव के तहत लिया गया फैसला दिखता है। इस सवाल पर पीडीटी आचार्य ने बचते हुए कहा कि इस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मैंने अपने कार्यकाल में भी सारे नियमों का अच्छी तरह से पालन किया है। इसे बिल्कुल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  का फैसला संविधान के मुताबिक नहीं है। इसे बिल्कुल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि  लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  का फैसला संविधान के मुताबिक नहीं है।

ऊपरी अदालत से राहत मिलते ही लोकसभा सचिवालय नोटिफिकेशन जारी करेगा और राहुल की सदस्यता बहाल हो जाएगी

पीडीटी आचार्य ने कहा कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को जैसे ही ऊपरी अदालत से राहत मिलती है। उसके साथ ही लोकसभा में उनकी सदस्यता बहाल हो जाएगी। मान लीजिए अगर ऊपरी अदालत ने सीजेएम के फैसले को पलट दिया। तो अपने आप ही लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  नोटिफिकेशन जारी करेगा और राहुल की सदस्यता बहाल हो जाएगी।

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पीडीटी आचार्य ने कहा कि लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  को संविधान के आर्टिकल-98 के तहत बनाया गया है। ये पूरी तरह स्वायत्त संस्था है और ये सरकार के तहत नहीं आता। लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat)  की बागडोर लोकसभा अध्यक्ष के हाथ में होती है। राज्यसभा के लिए उप राष्ट्रपति सर्वेसर्वा होते हैं। सरकार से इन सचिवालय का सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं है। कानून के मुताबिक, लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय निष्पक्ष तरीके से काम करता है और इनकी छवि भी अब तक निष्पक्ष ही रही है।

राहुल गांधी के मामले में सिस्टम के अंदर इनका जवाब ढूंढना पड़ेगा

क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के मामले से संसद सचिवालय की निष्पक्षता पर चोट लगी है के सवाल पर पीडीटी आचार्य कहा कि मैं चोट शब्द का इस्तेमाल तो नहीं करूंगा। लेकिन इस तरह से सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया को लेकर कई अहम सवाल खड़े हुए हैं। हमें सिस्टम के अंदर इनका जवाब ढूंढना पड़ेगा। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अब तक सूरत कोर्ट के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी है। इस मुद्दे पर टीएमसी,सपा, आप और शिवसेना जैसी पार्टियां खुलकर कांग्रेस के समर्थन में आ गई हैं। कांग्रेस इस एकता को और मजबूत करने पर काम कर रही है।

कांग्रेस का अभी तक ऊपरी अदालत का रुख न करना खड़े कर रहा है सवाल 

22 मार्च को सूरत कोर्ट (Surat  Court) का फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और कांग्रेस लीडर अभिषेक मनु सिंघवी (Congress leader Abhishek Manu Singhvi) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सजा के ऐलान में कई तरह की खामियां गिनाई थीं, लेकिन अभी तक ऊपरी अदालत का रुख न करना सवाल खड़े कर रहा है।

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