Richa Sharma birthday special: बॉलीवुड फेमस सिंगर ऋचा शर्मा (Richa Sharma) आज अपना 50वां बर्थड़े सेलिब्रेट कर रहीं हैं। ऋचा शर्मा का जन्म 29 अगस्त 1974 को फरीदाबाद में हुआ था। ऋचा के पिताजी कथा वाचक थे। वैसे तो ऋचा शर्मा किसी पहचान की मोहताज नहीं। लेकिन उन्होने एक इंटरव्यू में कहा था जब मैं बहुत छोटी थी तभी पिताजी को आभास हो गया था कि मैं एक गायिका बनूंगी।
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उन्होंने सबसे सामने यह बात कही थी कि मेरी बेटी संगीत में नाम कमाएगी। मैंने शहंशाही तरीके से संघर्ष किया है।मेरी जिंदगी में कभी भी कोई परेशानी आती थी, तो मेरे पिताजी हमेशा मुझसे कहते थे कि जीवन का यही मजा है। अगर तुम्हें प्लेट में बनी बनाई रोटी मिल जाएगी, तो उसका क्या मजा।
स्वाद तो उस रोटी में अधिक आता है, जिसके बीज को तुम खुद बोओ, काटो, पीसो, पकाओ और खाओ। उस रोटी का स्वाद ही अलग होता है। मुझे मेरे पिताजी ने सिखाया है कि मुश्किलों का सामना हंसते-खेलते हुए करना चाहिए। मैंने जिंदगी में बहुत नाकामियो का सामना किया है।
लेकिन इन नाकामियों से उभारकर मुझे इस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे बड़ा रोल मेरे माता-पिता का ही रहा है। अगर वो नहीं होते, तो मैं भी नहीं होती। उन्होंने हर मोड़ पर मेरा साथ दिया। पिताजी मुझे झांसी की रानी कहा करते थे। एक कथावाचक के रूप में उनकी पहचान थी। अब नाम भी बता दूं- पंडित दयाशंकर।
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उनकी प्रेरणा से मुझमें एक कुशल गायक के गुण बचपन से ही विद्यमान थे। मुझे आवाज मेरे पिताजी से मिली है। वह बचपन से ही मुझे सुबह-सुबह उठाकर रियाज करवाया करते थे। हम रोज सुबह उठकर सांस का रियाज करते थे। ‘स’ हमारे संगीत में बहुत महत्वपूर्ण होता है। वह संगीत में एक बुनियाद का काम करता है। मेरी बुनियाद मेरे पिताजी ने बहुत मजबूत बनाई। वह सुबह मुझे बहुत लाड़ से उठाते थे।
वह मुझ पर रियाज के लिए जोर नहीं डालते थे। वह माहौल बनाते थे और फिर हमारा रियाज शुरू होता था। मैं बचपन में बहुत शरारती थी, मुझे खुश रहना और दूसरों को खुश रखना बहुत पसंद है। मेरे माता-पिता बहुत ही साधारण थे। उन्होंने बहुत ही साधारण जीवन जिया है। मेरे पिताजी उसूलों के बहुत पक्के थे और मेरी मां बहुत शांत और सीधी थीं। मेरे परिवार में कोई भी गायक नहीं था।
मेरे पिताजी पुजारी थे, तो हम लोग हर सुबह साथ बैठकर एक साथ भजन करते थे। मुझे लगता है कि उसी से ही मेरी संगीत की विद्या की शुरुआत हुई। मुझे नूरजहां के गीतों ने भी काफी प्रभावित किया। मेरा बचपन फरीदाबाद में बीता है। लेकिन संगीत से मेरा लगाव मुझे दिल्ली खींच लाया। संगीत सीखने के लिए मुझे दिल्ली जाना था, लेकिन मेरे पिताजी मुझे अकेले भेजने के लिए तैयार नहीं थे और मैं संगीत सीखना चाहती थी।
इसमें मेरे बिट्टू भइया ने मेरा साथ दिया। मैं दिल्ली अकेली न जाऊं इसलिए वह भी मेरे साथ संगीत सीखने के लिए जाने लगे। हमने गंधर्व विद्यालय में दाखिला लिया और यहां में संगीत में मेरी नीव पड़ी। संगीत को लेकर मैं पहले से ही काफी उत्साहित थी। इसलिए मैंने कभी नाकामियों से हार नहीं मानी। मैंने बहुत ही शान से अपनी सभी नाकामियों का सामना किया है। अब बॉलीवुड में मेरी यात्रा को 23 साल हो चुके हैं।