जेंडर डिस्फोरिया (Gender Dysphoria) वह स्थिति है, जिसमें इंसान को यह महसूस होता है कि उसका प्राकृतिक लिंग उसके लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाता. बच्चे के शरीर की बनावट के आधार पर जन्म के समय प्राकृतिक लिंग नियुक्त होता है. लैंगिक पहचान वह है जैसा एक व्यक्ति अपने को पहचानता है या स्वयं को महसूस करता है. लेकिन किसी-किसी को अपनी सेक्सुअल आइडेंटिटी को लेकर कंफ्यूजन रहती है. बचपन से ही इसके लक्षण दिखने शुरू हो सकते हैं. मात्र 2 साल की उम्र के बच्चों में जेंडर डिस्फोरिया के लक्षण दिखाई दे सकते हैं.
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यहां हम आपको बताते हैं कि इससे क्या परेशानियां हो सकती हैं…
मायो क्लीनिक की रिपोर्ट के मुताबिक, सेक्सुअल आइडेंटिटी को बदलकर दूसरी सेक्सुअल आइडेंटिटी रखने की बेचैनी होना जेंडर डिस्फोरिया का प्रमुख लक्षण है. लड़के का लड़कियों की तरह या लड़की का लड़कों की तरह व्यवहार और हरकतें करना भी इसी का संकेत हो सकता है. अपने विपरीत जेंडर के लिए बने कपड़े पहनने में सहज महसूस करना. लड़के का अपने चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ देखकर परेशान हो जाना जबकि लड़की का अपने स्तन और पीरियड्स से परेशान हो जाना. अपने जननांगों और अन्य सेक्सुअल कैरेक्टरस्टिक से छुटकारा पाने की जिद देखी जा सकती है.
जीवन की दैनिक गतिविधियों से लेकर इसके अन्य पहलुओं तक को जेंडर डिस्फोरिया प्रभावित कर सकता है. स्कूल जाने के बाद बच्चे अपने जेंडर के बच्चों के साथ बैठने में असहज महसूस करेंगे, जिससे तमाम दिक्कतें हो सकती हैं. जिन लोगों को जेंडर डिस्फोरिया होता है वह अक्सर खुद के साथ भेदभाव होता हुआ महसूस करते हैं. इसकी वजह से तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं. जो छोटे बच्चे जेंडर डिस्फोरिया का शिकार हैं वह अक्सर उदास रह सकते हैं या फिर स्कूल न जाने की जिद कर सकते हैं. बड़े होने के बाद उनके जीवन में निजी रिश्तों पर भी इसका गंभीर असर पड़ता है|