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माता सीता के श्राप की सजा कलयुग में भी भुगत रहे है ये चारो, हर रोज इस सच्चाई से रूबरू होते होंगे आप

By टीम पर्दाफाश 
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लखनऊ: हिन्दू धर्म की मान्यताओं के आधार पर अपने पूर्वजो के पिंडदान की विधि को निभाना अति आवश्यक माना गया है। इसीलिए श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि हमारे पूर्वज श्राद्ध में ब्राह्मणों के रूप में भोजन करने आते हैं और इससे आत्मा को तृप्ति मिलती है। इसका एक अलौकिक संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है। जंहा माता सीता ने श्राप देकर चार लोगो को श्रापित किया था। रामायण में भी इसका उल्लेख प्रमुखता से किया गया है। रामायण के अनुसार प्रभु श्री राम के साथ माता सीता और भाई लक्ष्मण को बनवास मिला था। प्रभु श्री राम के बनवास प्रस्थान से अयोध्या के सभी प्राणी निराश व दुखी थे। इसी के साथ राजा दसरथ अपने पुत्र राम के वियोग को झेल नहीं पाए और उनकी मृत्यु हो गई।

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बनवास पर गए प्रभु श्री राम को जब इसकी सुचना मिली तब बह बहुत दुखी हुए। रामयण के अनुसार प्रभि श्री राम को चौदह वर्ष का बनवास निश्चित हुआ था, जिसकी बजह से बह अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके थे। तब प्रभु श्री राम व माता सीता और भाई लक्ष्मण ने पिता के पिंडदान करने का निश्चय किया।

पिता के पिंडदान के लिए आवश्यक सामग्री को एकत्रित करने के मकसद से प्रभु श्री राम भाई लक्ष्मण के साथ जंगल में ही निकल पड़े। इधर पिंडदान के लिए शुभ समय निकलता जा रहा था, लेकिन प्रभु श्री राम व भाई लक्ष्मण का दूर दूर तक कोई अता पता नहीं लग रहा था। इसलिए निकलते समय को ध्यान में रखते हुए, माता सीता ने अपने पिता समान ससुर का पिंडदान करने का निश्चय किया।

माता सीता ने पिंडदान के लिए जरूरी सामन को एकत्रित कर पूरी विधि विधान से पिंडदान की विधि को पूर्ण कर दिया। इसके कुछ समय पश्चात प्रभु श्री राम, लक्ष्मण के साथ बापिस लौट आये। तब माता सीता ने पिता समान ससुर के पिंडदान की पूरी बात बताई, और कहा पिंडदान के समय पंडित, गाय, कौवा और फल्गु नदी वहां उपस्थित थे। माता सीता ने कहा, की सच्चाई (कि पिंडदान पूरी विधि विधान से हुआ कि नहीं) के तौर पर इनसे पता लगाया जा सकता है।

रामायण के अनुसार प्रभु श्री राम ने चारो से पिंडदान के विषय में पूछा, लेकिन चारो ने ही प्रभु श्री राम के सामने झूठ बोल दिया कि ऐसी कोई विधि माता सीता के द्वारा की ही नहीं गयी। चारो की झूठी बात सुन माता सीता को क्रोध आ गया और उन्हें झूठ बोलने की सजा देते हुए आजीवन श्रापित कर दिया। श्राप के तौर पर माता सीता ने सारे पंडित कुल को श्राप दिया, कि पंडित को कितना भी मिलेगा लेकिन उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी।

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कौवे को कहा कि उसका अकेले खाने से कभी पेट नहीं भरेगा और वह आकस्मिक मौत मरेगा। फल्गु नदी के लिए श्राप था कि पानी गिरने के बावजूद नदी ऊपर से हमेशा सुखी ही रहेगी और नदी के ऊपर पानी का बहाव कभी नहीं होगा। अब अंत में बची गाय, माता सीता ने उनके मान को ध्यान में रखते हुए श्राप दिया कि हर घर में पूजा होने के बाद भी गाय को हमेशा लोगों का जूठन खाना पड़ेगा। रामायण में इस खंड का पुराण विस्तार दिया गया है। और इसका जीता जगता प्रमाण कलयुग में आज भी देखने को मिलता है। और आप आज के समय में माता सीता के श्राप को इन चारो प्राणियों में देख सकते है। आज भी माता सीता का श्राप सच नजर आता है।

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