नई दिल्ली। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 26 किलो वजनी मछली के बहुत ऊंची कीमत पर बिकने की चर्चा पूरी दुनिया है। क्रोकर प्रजाति की ये मछली 7 लाख 80 हजार रुपए में बिकी। ग्वादर जिले में पकड़ी गई ये मछली वजनी होती है। ये कई खूबियों के कारण काफी महंगी भी होती है। बीते कुछ सालों पर एक और क्रोकर मछली लगभग 17 लाख रुपए में बिकी थी।
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इस मछली में होते हैं बहुत से औषधीय गुण
बता दें कि क्रोकर मछली अपने औषधीय गुणों के कारण इतनी महंगी होती है। वैसे तो बहुत-सी मछलियां कई तरह के प्रोटीन और दूसरे गुणों से भरपूर होती हैं, लेकिन क्रोकर मछली की बात ही कुछ और है। इसके शरीर में पाए जाने वाले एयर ब्लैडर का सर्जरी में इस्तेमाल होता है। इससे वह टांके बनाए जाते हैं, जो सर्जरी के बाद काम आते हैं। ये इंसानी शरीर में आसानी से घुल जाते हैं और किसी तरह का साइड इफेक्ट नहीं देते। खासकर हार्ट सर्जरी जैसे मुश्किल काम में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता रहा है।
डिलीवरी के बाद भी दी जाती है ये मछली
इसके अलावा मछली में कई तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं, जैसे प्रोटीन, विटामिन और माइक्रोइलेमेंट्स। इनके साथ इस मछली के मांस का उपयोग एम्नीशिया (गंध-स्वाद न आना), अनिद्रा, थकान और चक्कर आने जैसी समस्याओं में होता है। साथ ही डिलीवरी के बाद प्रसूता को इसका मांस देने से काफी जल्दी रिकवरी होती है।
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शोध में साबित हो चुकी खूबियां
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) की एक रिसर्च बताती है कि लार्ज यलो क्रोकर मछली मेडिसिन की दुनिया में काफी पूछ-परख रखती है। रिसर्च के अनुसार ये शरीर में अतिरिक्त कोशिकाओं का निर्माण रोककर कैंसर से बचाने वाली साबित हो चुकी है। इससे शरीर में लगी चोट और संक्रमण का इलाज भी हो पाता है।
मुश्किल है मछलियों को पकड़ पाना
आमतौर पर चीन और दक्षिणी पीला सागर में मिलने वाली इन मछलियों की जितनी मांग है, इन्हें पकड़ना उतना ही मुश्किल है। इसकी एक वजह तो ये है कि ये मछली अपने ब्रीडिंग सीजन के दौरान ऊपर की ओर आती है, जो केवल दो महीने का ही होता है। यानी 12 में से दो ही महीने इनके पकड़े जाने की संभावना होती है। ऐसे में मछुआरों को इनकी ताक में रहना होता है। कीमती होने की एक वजह ये भी है।
विलुप्त हो रही हैं चीन की वजह से
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वैसे चीन में सत्तर के दशक में लगभग 2 लाख टन कोक्रर मछली पकड़ी गई। चीन समेत दूसरे देशों में बेची गई। इसके बाद से इसकी संख्या तेजी से घटी। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इसे विलुप्त हो रही मछलियों की श्रेणी में रेड लिस्ट में डाला।
प्रजनन बढ़ाने पर हो चुके शोध लेकिन नाकामयाब
मछलियों की संख्या कम होने के कारण इससे मेडिसिन तैयार करने वाले देश, जैसे चीन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और हांगकांग परेशान हो उठे। ये देश अब ऐसी कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह ज्यादा मछलियों का पालन हो सके। ब्रिटेन की एक्वाफीड नामक वेबसाइट के मुताबिक दक्षिण कोरिया और ताइवान ने इसकी ब्रीडिंग पर शोध भी किए, लेकिन वे ज्यादा कामयाब नहीं हो सके।
मछलियों की संख्या घटने के बाद भी चीन बची-खुची क्रोकर मछलियों को भी अपने काम में ला रहा है। यही कारण है कि साल 2018 में इस देश ने लगभग 39 200 टन लार्ज यलो क्रोकर मछलियों का निर्यात किया था। मछलियों के लिए वहां खास कोल्ड चेन तकनीक बनाई गई है, जिसकी वजह से मछलियां पकड़े जाने के बाद उन्हें महीनों-सालों रखना आसान हो गया।