नई दिल्ली: इस धरती लोक को पुराणों में पाप पुण्य का तराजू कहा जाता है। यंहा मनुष्य पाप भी करता है और पुण्य भी कमाता है। अपने पुरे जीवन काल में मनुष्य से जाने अनजाने कुछ न कुछ गलतियां जरूर हो जाती है। इनमे से बहुत सी गलतियों को धर्म शास्त्रों में पाप की संज्ञा दी गयी है। धर्म शास्त्रों में इसका विशेष रूप से उल्लेख भी किया गया है, इसका एक छोटा सा उल्लेख इस प्रकार है, हमारे पुरे जीवन में अनेको जीव हमारे पैरो के नीचे आकर मर जाते है, यह भी पाप है।
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धर्मग्रंथो के आधार पर इनके उपाय भी बताये गए है, ग्रंथो में बताया गया है कि मनुष्य को बह कौन से पांच काम करने चाहिए जिससे इन पापो के अशुभ फलो से बचा जा सके। तो आइये आज हम आपको बह पांच उपाय बताते है।
1- ब्रह्मयज्ञ
पुराणों के अनुसार मनुष्य को प्रतिदिन बेदो का अध्यन करना चाहिए, बेदो का अध्यन ब्रह्मयज्ञ कहलाता है। इसके तहत पुराण, उपनिषद, महाभारत, गीता या आध्यत्म विद्याओ के पाठ से भी यह यज्ञ पूर्ण होता है। पुराणों के अनुसार जीवन ब्यस्त साधना का मार्ग है, ऐसे में मनुष्य चाहे तो केवल गायत्री मन्त्र का जाप कर ब्रह्मयज्ञ सम्पूर्ण कर सकता है। मान्यताओं के आधार पर इस यज्ञ से ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है। इसीलिए इस यज्ञ को ऋषियज्ञ या स्वाध्याय यज्ञ भी कहा जाता है।
2- देवयज्ञ
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मनुष्य को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार यज्ञ में आहुति जरूर देनी चाहिए। यज्ञ में बैठ देवताओ की स्तुति मात्र से देवयज्ञ का लाभ मिलता है। देवी देवताओ को प्रशन्न करके उनसे अपने कर्मो की छमा याचना करनी चाहिए।
3- भूतयज्ञ
कीट-पतंगों, पशु-पक्षी, कृमि या धाता-विधाता स्वरूप भूतादि देवताओं के लिए अन्न या भोजन अर्पित करना भूतयज्ञ कहलाता है।
4- पितृयज्ञ
पुराणों की मान्यताओं के आधार पर मनुष्य को अपने पितरो की आत्माओ की संतुष्टि व तृप्ति के लिए अन्न-जल समर्पित करना चाहिए। पितरो के नाम पर किया जाने बाला अन्न समर्पण पितृयज्ञ कहलाता है। जिसमे मनुष्य को अपने पितरो से आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, और परिवार में सुख समृद्धि व बैभव बना रहता है। अमावस्या, श्राद्धपक्ष आदि इसके लिए विशेष दिन है।
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5- मनुष्य यज्ञ
धर्म शास्त्रों के आधार पर अतिथि को भगवान् का दर्जा दिया जाता है। अतिथि की सेवा अन्न, बस्त्र, धन से तृप्त कर उनका आदर करना चाहिए। दिव्य पुरुष को अन्न दान ही मनुष्य यज्ञ कहलाता है। इसी लिए धर्म शास्त्रों के आधार पर अपने घर के दरबाजे पर आये किसी ऋषि मुनि या भिखारी को नहीं भगाना चाहिए, अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दान जरूर करना चाहिए।
पुराणों के अनुसार मनुष्य को हमेशा पुण्य के कार्य करने चाहिए, पाप के कार्यो से बचना चाहिए। अगर मनुष्य जाने अनजाने कोई गलती कर देता है, तो उसको तुरंत छमा याचना कर लेनी चाहिए। मनुष्य की भूल ही उसकी सबसे बड़ी छमा कहलाती है। मनुष्य प्रभु का ध्यान लगाकर उनकी स्तुर्ती कर लेने मात्र से कई पापो से मुक्ति मिल जाती है।