नई दिल्ली। हिंदुत्व का चेहरा और गुजरात मॉडल के आधार पर 2014 में केंद्र की राजनीति करने आए नरेंद्र मोदी की गिनती देश के सबसे बड़े नेताओं में की जाने लगी है। लगातार वो तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, जो अपने आप में ही एक बड़ा इतिहास है। इस इतिहास के साथ नरेंद्र मोदी भाजपा के अभी तक के सबसे बड़े चेहरे और नेता बनकर सामने आ गए। हालांकि, इसके विपरीत कुछ लोगों के बड़े आरोप हैं, जिसमें सबसे बड़ा आरोप गुजरात के साथ देश में मोदी राज में भाजपा से कोई बड़ा चेहरा नहीं बन पाया। या यूं कहें बड़े चेहरों को साइडलाइन कर दिया गया। इसी तरह से कई राज्यों में भाजपा के दिग्गज नेताओं की धमक भी कम हुई है।
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अब हम बात गुजरात से करते हैं, जब 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय पार्टी के पास कई बड़े दिग्गज नेता मौजूद थे, जिसमें केशुभाई भाई पटेल, शंकर सिंह बघेला, दिलीप पारिख समेत कई नाम थे। इनमें कई कुछ नेता ऐसे भी थे, जो गुजरात में नरेंद्र मोदी के बेहद करीबियों में शामिल थे। हालांकि, समय बीतता गया और नरेंद्र मोदी का राजनीति में ग्राफ बढ़ता गया लेकिन भाजपा के दिग्गज कहलाने वाले नेताओं की राजनीति छवि कमजोर होती गई। लिहाजा, गुजरात में नरेंद्र मोदी से बड़ा चेहरा कोई नहीं बन पाया।
इसके बाद भाजपा में धीरे-धीरे उनका कद और बढ़ता गया और वो केंद्र की राजनीति की तरफ अपना कदम बढ़ाते गए। 2014 में उनके चेहरे पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत से भाजपा की केंद्र की राजनीति में वापसी हुई। इस चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भाजपा विधानसभा से लेकर हर चुनाव लड़ने लगी और जनता भी नरेंद्र मोदी के चेहरे को पसंद करने लगी। नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भाजपा की केंद्र और कई राज्यों में सरकार भी बनी, जिन राज्यों में भाजपा की सत्ता आई वहां पर सिर्फ नरेंद्र मोदी का चेहरा काम आया।
लेकिन भाजपा के राज्य और क्षेत्र स्तर के नेताओं का चेहरा और उनकी पहचान इन सबके बीच धुंधली होती गई। यहां तक की भाजपा अध्यक्ष के चेहरे पर भी चुनाव नहीं लड़ गया और न ही चुनाव प्रचार और पोस्टरों में उनको इतनी तरजीह दी गई। गुजरात के बाद केंद्र की राजनीति में भी नरेंद्र मोदी का एकक्षत्र राज दिखा। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है, पार्टी के क्षेत्रीय दिग्गज नेता साइडलाइन होते गए।
अब हाल के हुए कुछ चुनावों पर नजर डालें तो ये बातें बिल्कुल साफ हो जाएगी। लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलांगना में चुनाव हुए थे। इन सभी राज्यों में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करकर चुनाव लड़ा था, जबकि इन राज्यों में भाजपा के पास क्षेत्रीय नेताओं में मनोहर लाल खट्टर, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह जैसे नेता मौजूद थे। हालांकि, पीएम मोदी के साथ इन नेताओं ने भी चुनाव में अपनी ताकत झोंकी और पार्टी की चार राज्यों में पूर्ण बहुत और एक राज्य में गठबंधन की सरकार बनी। इसमें तेलंगाना और जम्मू कश्मीर में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।
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इस चुनाव परिणाम के बाद भाजपा के क्षेत्रीय दिग्गज नेता शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह जैसे नेता साइडलाइन करते हुए और भाजपा के दूसरे नेताओं को मौका दिया गया। हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया गया लेकिन अब मध्य प्रदेश की राजनीति से उनकी वो धमक कम जरूर हो गई। कुछ इसी तरह से वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ ही भी हुआ, वहां पर नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने इनको भी एक तरह से साइडलाइन करने का काम किया। कुछ इसी तरह से हरियाणा में भी देखने को मिला, जब भाजपा ने चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्ट को साइडलाइन कर दिया और नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया।
ऐसी स्थिति में कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि, भाजपा में अब मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, मंत्री समेत अन्य अहम पद लोगों को जरूर मिल जाए, लेकिन नेता और चेहरा सिर्फ नरेंद्र मोदी का गुजरात से लेकर केंद्र की राजनीति तक देखने को अभी तक मिला है।
अमित शाह, योगी जैसे नेताओं का भाजपा में बढ़ा कद
इन सबके बीच मोदी युग में केंद्रीय मंत्री गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह समेत अन्य नेताओं का कद बढ़ा भी है। इसमें सबसे अहम ये है कि, सीएम योगी की हर राज्यों के चुनावों में प्रचार के लिए डिमांड है और उनकी कानून व्यवस्था का जिक्र भी दूसरे राज्य के सीएम कर रहे हैं।