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अयोध्या को पुराना वैभव मिलना हर भारतीय के लिए गौरव की अनुभूति

By आराधना शर्मा 
Updated Date

लखनऊ: पूरी दुनिया में अयोध्या इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई है। 22 जनवरी 2024 की तारीख का रामभक्त बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। 500 सालों के संघर्ष के बाद आस्था को मुकाम मिलने जा रहा है और रामलला भव्य मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं। कुछ वर्षों पहले तक जो अयोध्या उपेक्षित थी, जहां विकास का दूर—दूर तक नाता नहीं था, आज उसका स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। सड़क चौराहों से लेकर रेलवे स्टेशन का कायाकल्प हो चुका है। एयरपोर्ट की सुविधा है। श्रद्धालुओं और पर्यटकों के ठहरने के लिए उम्दा इंतजाम हैं, सरयू के तट की सुंदरता देखते ही बनती है।

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विकास कार्यों की बदौलत रोजगार के अवसर बढ़े हैं। दीपोत्सव जैसे आयोजन के कारण कुम्हार और छोटे कारोबारियों की आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। देखा जाए तो राम मंदिर निर्माण एक साथ कई तरह की सौगात लेकर आया है। ये सिर्फ धार्मिक लिहाज से श्रद्धालुओं के लिए भावुक और गर्व की अनुभूति नहीं है, बल्कि विकास के नजरिए से भी बेहद महत्वपूर्ण है। आज अयोध्या में विश्वस्तरीय सुविधाओं की मौजूदगी ये बताती है कि रामनगरी को उसका पुराना वैभव वापस मिला है। वहीं ये तो शुरुआत है, आने वाले दिनों में नव्य अयोध्या की तस्वीर पूरी दुनिया को हैरत में डालने वाली होगी।

अयोध्या को पौराणिक मान्यता से लेकर इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो हर दौर में ये बेहद खास रही। कौशल राज्य की राजधानी साकेत अर्थात जो स्वर्ग के सामान हो। इसी साकेत को आगे चलकर अयोध्या नाम मिला। जो ‘अ योध्य’ है अर्थात जिसे कभी पराजित, परास्त नहीं किया जा सकता। अयोध्या के इतिहास में वात्सल्य, राग, करुणा, श्रद्धा, द्वेश, श्रृंगार, विध्वंस और निर्माण समाहित है। अयोध्या का अस्तित्व अति प्राचीन है। किसी भी कालखंड़ का इतिहास टटोलने पर अयोध्या का किसी न किसी नाम, रूप में वर्णन मिल जाता है।

मान्यता है कि सतयुग में अयोध्या नगरी को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। जब मनु ने इस नगरी को बसाया तो यहा जल नहीं था। ऐसे में भगवान विष्णु के नेत्रों से आंसू गिरे। यह अमूल्य आंसू ​ब्रहमा जी ने अपने कमंडल में रख लिए। इसलिए अयोध्या की सरयू नदी का नाम नेत्रिया भी है। महाराज मनु और उनकी पत्नी महारानी शतरूपा से मनुष्य जाति की इस अनुपम सृष्टि की रचना हुई। जब उन्हें शासन करते बहुत समय बीत गया और बुढ़ापा आ गया तो उन्हें चिंता हुई कि सारा जन्म हरि की भक्ति बिना ही बीत गया। पुत्र को राज्य सौंप दोनों ने प्रसिद्ध नैमीशारण्य तीर्थ की ओर गमन किया। वहां वह दोनों विष्णु द्वादशाक्षर ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करने लगे।

दोनों को तप करते कई हजार वर्ष बीत गए। उनके शरीर अस्थियों का ढांचा रह गए, पर उनके मन में जरा भी पीड़ा न थी। उनकी तपस्या से श्री प्रभु प्रसन्न हुए और आकाशवाणी से बोले कि वर मांगों। आकाशवाणी सुन कर दोनों के शरीर हृष्ट-पुष्ट हो गए। श्री हरि भगवान के दर्शन होते ही मनु-शतरूपा प्रभु के चरणों से लिपट गए। मनु भगवान से बोले कि मुझे आप के समान पुत्र चाहिए। इस पर भगवान ने वरदान दे दिया ‘है राजन मैं स्वयं आपके पुत्र रूप में आउंगा।’ महारानी शतरूपा ने भी कहा कि जो वर मेरे पति महाराज मनु ने मांगा, मुझे भी वही अच्छा लगा। कुछ समय पश्चात मनु और शतरूपा ने अयोध्या के राजा दशरथ और महारानी कौशल्या के रूप में जन्म लिया। और अयोध्या नगरी के दशरथ महल में ही प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। अयोध्या को खुली आखों से देखें या बंद पलकों से भगवान राम इसके कण—कण में दिखेंगें। धन्य-धान्य और रत्न-आभूषणों से भरी इस नगरी की अतुलनीय छटा और खूबसूरत इमारतों का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। इसलिए महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में अयोध्या नगरी की शोभा की तुलना करते हुए इसे दूसरा इंद्रलोक कहा।

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सूर्यवशी राजाओं की राजधानी अयोध्या वर्षों तक चले रामराज्य के बाद जब प्रभु श्रीराम ने जल समाधि ली और अपनी सांसारिक लीला समेटी तभी से रामनगरी का स्मित, हास्य, लास्य और श्रृंगार तिरोहित होने लगा और यह एकाकी रह गई। भगवान राम के स्वलोक गमन के बाद उनके यशस्वी पुत्र कुश ने फिर से अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व चरम पर रहा। इसके बाद द्वापर में महाभारत काल में हुए युद्ध के बाद भी अयोध्या फिर से उजाड़ हो गई।

युग बदले, सदियां बदली, इतिहास बदलता रहा। कुछ नहीं बदला तो अयोध्या का अस्तित्व। नि:संदेश ये अस्तित्व पूर्णत: वही और वैसा नहीं रहा जैसा प्रारम्भ में था। लेकिन यह परिवर्तन कालजनक नहीं था। अयोध्या एक बार फिर अपने पुराने वैभव के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसको प्रतीक्षा रही अपने राम की। विश्वास था प्रतीक्षा सफल होगी और वह इंतजार अब 22 जनवरी 2024 को रामलला के भव्य मंदिर में गर्भगृह में विराजमान होने के साथ खत्म होने जा रहा है.

आध्या​त्मिक रूप से अयोध्या परम वैभव का महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए भगवान बुद्ध ने इस स्थान को अपने त्याग, तपस्या और समर्पण के लिए चुना. इतिहासकारों के मुताबिक 600 ईसा पूर्व में राजा प्रसेनजीत के समय ये श्रावस्ती की राजधानी साकेत थी। गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से यहां लेकर आए और इसका नाम अयोध्या रखा। गुप्त काल में अयोध्या बड़ा व्यापारिक केंद्र बना। उत्तर भारत के शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा पुष्यमित्र शुंग का एक शिलालेख अभी तक अयोध्या में संरक्षित है। जिन्हें वैदिक धर्म के पुनरुत्थान का श्रेय दिया जाता है। इतिहास के इन्ही पृष्ठों, अभिलेखों में उल्लेखित तथ्य, साक्ष्य के रूप में अयोध्या की पहचान सिद्ध करते हैं। गीता प्रेस की पुस्तक ‘अयोध्या दर्शन’ की पृष्ठ संख्या 98, 99 में पहले राम मंदिर निर्माण का जिक्र मिलता है, जिसे गुप्त वंश के सबसे महान और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। जैसे अयोध्या से श्रीराम की कहानी जुड़ी है ठीक वैसे ही राम मंदिर से राजा विक्रमादित्य की कहानी जुड़ी है। सतयुग की अयोध्या को कलयुग में विक्रमादित्य की खोज ने और संवारने का जिक्र रूद्रयामल ग्रंंथ में भी मिलता है। कहतें है राजा विक्रमादित्य ने 148 तीर्थों में कुल 360 मंदिरों का निर्माण कराया था। जिनमें प्रभु श्रीराम का मंदिर भी शामिल था।

भारत की हर धड़कन में श्रीराम हैं। राम हर श्वांस में रमे हुए हैं जीवन की आशा में परस्पर मिलते हुए दो व्यक्ति एक दूसरे को राम—राम कहते हैं। मृत्यु होने पर श्मसान ले जाते समय ‘राम नाम सत्य’ मोक्ष मंत्र बन जाता है। राम की महिमा अपार और उनका विस्तार अनंत है। ऐसे राम की अयोध्या किसी आक्रांता के आगे कैसे हार सकती है। अयोध्या नगरी राम से भी प्राचीन है। अयोध्या कई बार बनी, मिटी सजी और संवरी। सतयुग में मनु के मन में अयोध्या बसी। त्रेता में अयोध्या ने महाराज दशरथ का स्वर्णिम युग और भागवान राम का राम राज्य देखा। फिर उन्मादी बर्बरता की गवाह भी बनी। अयोध्या ने अनेक युद्ध देखे हैं। भूमि पर अस्त्र—शस्त्रों से लड़े जाने वाले भी और अन्तस में चलने वाले भयंकर महायुद्ध भी। लेकिन 1528 में एक आक्रांता के आक्रमण से अयोध्या की आत्मा, राम के नगर, भारत की सांस्कृतिक पहचान, राम के जन्म स्थान पर प्रहार हुआ था। तब भी अयोध्या हारी नहीं। 1528 से 2020 तक अयोध्या के पूरे 492 सालों के इतिहास में कई मोड़ आए। इसमें 9 नवंबर 2019 का दिन बेहद खास रहा, जब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

अयोध्या से जुड़े ऐतिहासिक घटनाक्रम

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