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गंगाजल और दूध मिलाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है
खरना के दिन सूर्य देव की विधिवत पूजा का भी विधान है। खरना के दिन सूर्यास्त से ठीक पहले व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। सबसे पहले छठी मैया के पूजा स्थल पर एक दीपक जलाया जाता है। फिर पानी में गंगाजल और दूध मिलाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद सूर्य देव को प्रसाद का भोग लगाया जाता है और उसे लोगों में वितरित किया जाता है।
विशेष प्रसाद
खरना के दिन शाम से लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। रोटी, गुड़ की खीर और फलों का भोग लगाया जाता है। खरना वाले दिन भगवान का विशेष प्रसाद व्रत रखने वाले ही तैयार करते हैं। फिर शाम के समय भगवान को अर्पित करने के बाद उसे ग्रहण करते हैं। खरना से जो उपवास शुरू होता है वह सप्तमी तिथि के दिन अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हो जाता है।
मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर
खरना वाले दिन मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाई जाती है। खीर बनाने के लिये पीतल के बर्तन का प्रयोग किया जाता है। इसके लिये मिट्टी के चूल्हे का प्रयोग किया जाता है। गुड़ की अन्य मिठाई ठेकुआ और लड्डू भी बनाये जाते हैं। खीर सिर्फ व्रती इंसान ही बनाता है। पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम के समय व्रती इसी गुड़ की खीर का सेवन करते हैं।