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Demonetisation : नोटबंदी से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, सरकार का कदम सही

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government)के 2016 में 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने नोटबंदी (Demonetisation) के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ (Constitution Bench)ने कहा कि यह निर्णय कार्यकारी की आर्थिक नीति होने के कारण उलटा नहीं जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों के बीच एक समन्वय था। कोर्ट ने कहाकि नोटबंदी (Demonetisation)  की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। आरबीआई (RBI) के पास विमुद्रीकरण (Demonetisation)  लाने की कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है और केंद्र और आरबीआई (RBI) के बीच परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया।

फैसला रख लिया था सुरक्षित

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सात दिसंबर को केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को निर्देश दिया था कि वे 2016 के फैसले से संबंधित सारे रिकॉर्ड उनको सौंपे। इसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यन और बी वी नागरत्ना भी शामिल हैं। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित आरबीआई (RBI) के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलें सुनी थीं।

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58 याचिकाओं के बैच पर हुई सुनवाई

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने 8 नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी (Demonetisation) को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई की है। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों को बंद करने को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है। ये केवल आरबीआई (RBI) के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है।

वहीं, 2016 की नोटबंदी (Demonetisation)  की कवायद पर फिर से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है जब ‘घड़ी को पीछे करने’ से कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।

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