लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (Chhatrapati Shahu Ji Maharaj University, Kanpur) के कुलपति प्रो. विनय पाठक (Vice Chancellor Prof. Vinay Pathak) मुश्किलें बढ़ती जा रही है। प्रो. पाठक के खिलाफ यूपी की राजधानी लखनऊ में दर्ज कमीशनखोरी के मामले की अब प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी जांच करेगा। प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि कमीशनखोरी के खेल में कहीं प्रिवेंशन आफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (Prevention of Money Laundering Act) का उल्लंघन तो नहीं हुआ है?
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सूत्रों ने बताया कि इस मामले में ईडी (ED) ने लखनऊ पुलिस (Lucknow Police) से एफआईआर (FIR) की सत्यापित कॉपी मांगी है। इसके साथ ही जांच एजेंसी ने प्रो. पाठक के साथी अजय मिश्रा और अजय जैन से जुड़ी जानकारी मांगी है। इसके बाद ईडी (ED) अपने यहां भी एफआईआर दर्ज कर सकता है। बता दें कि प्रो. पाठक और उसके सहयोगियों के खिलाफ पिछले दिनों लखनऊ के इंदिरानगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था। यूपी एसटीएफ (UP STF) ने पहले विनय के करीबी अजय मिश्रा को गिरफ्तार किया और उसके बाद बीते रविवार को अलवर के अजय जैन को गिरफ्तार कर लिया।
प्रो. पाठक ने एकेटीयू में चलाया था अपना सिक्का
छत्रपति साहूजी महराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. विनय पाठक ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (AKTU) में तैनाती के दौरान भी खूब मनमानी की थी। प्रो. पाठक एकेटीयू के घटक संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (IET) में अपने करीबी निर्माण एजेंसी से लेकर आपूर्ति करने वाली फर्म को खुले हाथ से काम देते गये। इसकी शिकायत होने पर राजभवन ने जनवरी में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी से जांच कराई।
जिसमें उन पर लगे कई आरोप सही पाये गये। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रो. पाठक ने निर्माण कार्य से लेकर खरीद-फरोख्त में एकेटीयू के मानक व नियमों को दरकिनार कर खुलेआम अपने करीबी लोगों की एजेंसियों से काम लिया। कई मामले में बिना कार्य भुगतान करने की बात सामने आई। प्रो. पाठक ने इस जांच रिपोर्ट को दबाने के लिए भी काफी प्रयास किया। वहीं एकेटीयू में जांच कर रही एसटीएफ की टीम के हाथ राजभवन के तरफ से कराई गई जांच की रिपोर्ट लगी है। जिसे टीम ने जांच के दायरे में शामिल कर लिया है।
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प्रो. पाठक ने एकेटीयू (AKTU) से संबंद्ध आईईटी कॉलेज में किये गये खर्चों के बारे में शिकायत राजभवन से की गई थी। आरोप था कि प्रो. पाठक के कार्यकाल में आईईटी और एकेटीयू (AKTU) के अधिकारियों ने काम करने वाली एजेंसियों के साथ मिलीभगत की थी। बिना काम के अवैध भुगतान किया गया। वहीं कंप्यूटर व अन्य सामानों की खरीद में अनियमितता मिली है। इसकी शिकायत जनवरी 2022 को राजभवन में की गई।
राजभवन ने इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया। जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य व पूर्व जिला जज प्रेम सिंह, राजकीय इंजीनियरिंग कालेज कन्नौज के निदेशक प्रो. मनोज कुमार शुक्ला व एकेटीयू के सहायक कुलसचिव रंजीत सिंह को शामिल था।
इस कमेटी ने चार प्रमुख बिंदुओं पर पड़ताल की। इसमें आईईटी (IET) में हुए सिविल, विद्युत व निर्माण संबंधित कार्य, आईईटी (IET) में विभिन्न विभागों में उपकरणों के भुगतान एवं टिक्विप-3 के भुगतान, आईईटी (IET) में शिक्षकों के स्वीकृत पदों के सापेक्ष में अतिरिक्त संविदा शिक्षकों की नियुक्ति और आईईटी छात्रावास में वार्ड ब्वाय रखे जाने का मामला शामिल था।
बिना काम अंजनेय कंस्ट्रक्शन को किया भुगतान
जांच रिपोर्ट के अनुसार प्रो. पाठक ने आईईटी के निर्माण कार्य इंदिरानगर के अंजनेय कंस्ट्रक्शन को दिया गया। आरोप है कि इस कंपनी को बिना काम के ही भुगतान किया गया है। इसके अलावा कई और निर्माण एजेंसियों को जो काम ही नहीं किया उसका भुगतान किया गया। कमेटी के रिपोर्ट के मुताबिक यह सब मनमाने तरीके से किया गया था। यहां तक की इन कंपनियों व एजेंसियों ने निर्माण के बाद रखरखाव के संबंध में कोई एग्रीमेंट नहीं किया था। जिस पर तत्कालीन एफएओ अभिषेक त्रिपाठी ने आपत्ति भी की थी। वहीं टिक्विप के पीएम खोडके ने कंप्यूटर और अन्य सामानों की खरीद में प्रक्रियाओं के संबंध में अपनी आपत्ति की थी। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
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निजी निर्माण एजेंसियों से कराया था कार्य
जांच समिति ने आईईटी (IET) में टिक्विप-3 से वित्त पोषण के तहत कई सामानों की खरीद के अलावा सिविल व विद्युत रखरखाव और सिविल निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच की थी। इस बिंदु पर समिति ने एकेटीयू व आईईटी के अधिकारियों से पूछताछ की थी। यहां तक इन कामों से संबंधित फाइलों को भी तलब किया। समिति ने देखा कि निर्माण या रखरखाव के किसी भी फाइल रिकार्ड में समिति ने पाया कि आईईटी के किसी भी रखरखाव या निर्माण कार्य में कोई थर्ड पार्टी ऑडिट, निरीक्षण नहीं किया। यह बहुत ही गंभीर मामला है।
समिति ने पाया कि निर्माण और रखरखाव के कार्य आम तौर निजी और गैर सरकारी एजेंसियों से कराये जाते थे। जबकि कई सक्षम अनुभवी सरकारी एजेंसियां एकेटीयू और आईईटी (IET) को उपलब्ध है। समिति ने यह आपत्ति की एकेटीयू ने यूपीआरएनएन (उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम) को सरकारी इंजीनियरिंग संस्थानों के लिए दीन दयाल उपाध्याय गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम योजना में विशेष निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए सम्मानित किया था।
अजय जैन ने लगाये 40 ई-वे बिल
आगरा स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (Dr. Bhimrao Ambedkar University, Agra) में कार्यवाहक कुलपति रहने के दौरान विनय पाठक पर कमीशन लेने का जो आरोप लगा है। इन कमीशन के रुपये को ठिकाने लगाने का जिम्मा अजय जैन को दिया गया था। अजय जैन ने अपनी कंपनी के जरिये 40 से अधिक ई-वे बिल अकेले आगरा विश्वविद्यालय में लगाये। इसकी पुष्टि अजय ने गिरफ्तारी केबाद देर रात को हुई पूछताछ में कुबूल किया। अजय जैन ने प्रो. विनय पाठक के करीबी अजय मिश्रा के बारे में कई राज उगले हैं।
एसटीएफ के अधिकारी के मुताबिक अजय जैन ने कई सवालों पर चुप्पी साध ली थी, लेकिन कुछ दस्तावेज दिखाने पर कई राज उगले। उसने कुबूला कि खुर्रमनगर निवासी अजय मिश्र के कहने पर उसने कमीशन के रुपयों को मैनेज किया था। यह सब विनय पाठक के कमीशन के लिये किया गया था। अजय मिश्र को एसटीएफ ने सबसे पहले इस मामले में गिरफ्तार किया था।
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अलवर की फर्म से मंगवाये दस्तावेज
विवेचक डिप्टी एसपी अवनीश्वर श्रीवास्तव ने बीते सोमवार को अजय जैन की राजस्थान के अलवर स्थित फर्म से ई-वे बिल के अलावा कई अन्य दस्तावेज मंगवाये है। इसके लिये आगरा से एक टीम अलवर पहुंची है। यह टीम वहां अजय जैन की कंपनी के कई कर्मचारियों से पूछताछ भी करेगी। दावा किया जा रहा है कि दस्तावेजों की जांच में कई और लोग कार्रवाई के दायरे में आयेंगे।
प्रो. विनय पाठक ने आईईटी में 58 रिक्तियों के सापेक्ष 97 नियुक्तियां की
प्रो. विनय पाठक ने आईईटी में शिक्षकों की नियुक्ति में 58 रिक्तियों के सापेक्ष 97 नियुक्तियां की थीं। 74 स्वीकृत पदों के अनुपात में यहां 53 शिक्षक कार्यरत थे। कार्यपरिषद ने 32वीं बैठक में 25 स्थायी और 45 स्व-वित्तपोषित शिक्षकों की नियुक्ति की संस्तुति दी। 58वीं बैठक में वित्त कमेटी ने सिर्फ 13 पदों के लिए अप्रूवल दिया। प्रो. पाठक ने नियमित शिक्षकों के 46 पदों के बदले 68 और स्व-वित्त पोषित पद पर 29 नियुक्तियां कीं। इससे शिक्षकों के वेतन के लाले पड़ गए। ऐसे में अगले शैक्षणिक सत्रों के लिए शिक्षकों को या तो हटाया जाएगा या फिर स्ववित्त पोषित में समायोजित किया जा सकता है।
फर्जी ई-वे बिल से 107 कंप्यूटरों की खरीद
रिपोर्ट के मुताबिक 30 मार्च 2021 को ई-वे बिल 6412 8435 6814 दर्ज था, जबकि 31 मार्च को 6112 8544 0469 जारी किया गया था। इसी नंबर का ई-वे बिल 3 अप्रैल 2021 को जारी किया गया। जांच में पता चला कि 31 मार्च का ई-वे बिल फर्जी है। समिति ने सभी जालसाजों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की है।
इंटरनेशनल बिजनेस फर्म के खाते से दिया कमीशन
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छत्रपति शाहूजी महराज के कुलपति प्रो. विनय पाठक के मामले में फर्जी लेनदेन और बड़े पैमाने पर कमीशन की बात सामने आई है। रविवार को गिरफ्तार अजय जैन की कंपनी इंटरनेशनल बिजनेस फर्म और अजय मिश्रा की एक्सएलआईसीटी के बीच 50 से अधिक लेनदेन का ब्योरा एसटीएफ के हाथ लगा है। पूछताछ में अजय जैन इसका हिसाब नहीं दे सका, जबकि कंपनी के खाते से कमीशन के रूप में 73 लाख रुपये देने की पुष्टि हुई है। इसी आधार पर आरोपी अजय जैन को जेल भेज दिया गया।
एसटीएफ के मुताबिक, प्रो. पाठक को कमीशन देने के लिए संबंध में अजय जैन को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया गया था। अजय की कंपनी रजिस्टर्ड है। बावजूद इसके अजय ने फर्जी बिल तैयार कर लेनदेन किया। अब एसटीएफ कानपुर विश्वविद्यालय के कई अधिकारियों व कर्मचारियों को मुख्यालय बुलाकर पूछताछ करेगी। फिलहाल इनके शहर छोड़ने पर पाबंदी लगाई गई है।
राज्यपाल को छह पूर्व विधायकों ने लिखा था पत्र
छह पूर्व विधायकों ने भी प्रो. पाठक पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर राज्यपाल आनंदबेन पटेल से ईडी, आईटी और सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी। आरोप है प्रो. पाठक ने उच्च शिक्षा मंदिर उत्तराखंड मुक्त विवि हल्द्वानी, कोटा की वर्धमान महावीर ओपेन यूनिवर्सिटी, आगरा विवि, कानपुर विवि, एकेटीयू, लखनऊ के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विवि में वीसी के रूप में रहते हुए करोड़ों का भ्रष्टाचार किया है।
बिना सामान भेजे करोड़ों का भुगतान
आगरा विवि में बिना सामान भेजे ही ट्रांसपोर्ट से करोड़ों रुपये का ई वे बिल लगाकर भुगतान कराया गया। कमीशन को मैनेज करने के लिए राजस्थान के अलवर की कंपनी इंटरनेशनल बिजनेस फर्म का इस्तेमाल किया गया। ट्रांसपोर्ट ई-वे बिल में भेजे गए सामान में ओएमआर शीट, दस्तावेज समेत कई अन्य चीजें दिखायी गईं। बिल में दर्ज ट्रक उन टोल टैक्स से निकले ही नहीं, जिन टोल प्लाजा की रसीद लगाई गई है। इसी आधार पर गुड़गांव निवासी अजय जैन को गिरफ्तार किया गया।
एसटीएफ आगरा की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रांसपोर्टर, विश्वविद्यालय के अधिकारी व कर्मचारियों की सूची तैयार हो गई है। रसीद में जिन ट्रकों के नंबर हैं, उनसे न तो सामान आया और न ही यह ट्रक दिल्ली से आगरा के बीच किसी टोल प्लाजा से गुजरे हैं। इस मामले में अभी और खुलासे होने ने बाकी है।
अपनों को भर्ती करने के लिए बनाया पीएमयू सेल
कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विवि में कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने अंकतालिकाओं, डिग्री की समस्याओं को दूर करने के लिए पीएमयू सेल बनाया। इसका गठन छात्रों की समस्याओं को सुलझाने से ज्यादा अपनों की भर्ती के लिए हुआ। इस सेल में सिर्फ एजेंसी के तहत लोगों को रखा गया है। काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी प्रो. पाठक के साथ पहले भी दूसरे विवि में काम कर चुके हैं।
साथ ही इनको मानक से अधिक वेतन भी दिया जा रहा है। आगरा विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के आरोप में प्रो. पाठक के खिलाफ लखनऊ में मुकदमा भी दर्ज हुआ है। इसकी जांच एसटीएफ कर रही है। इसके बाद कर्मचारियों ने भी राज खोलने शुरू कर दिए।
कर्मचारियों का कहना है कि सेल को छात्रों की अंकतालिका व अंतिम परीक्षा परिणाम से संबंधित काम सौंपा गया। मतलब, अंकतालिका में अंक गलत चढ़ना आदि समस्याओं को लेकर छात्र-छात्राएं पीएमयू सेल का चक्कर काट रहे हैं।
इससे पहले अंकतालिकाओं से संबंधित काम विवि के कर्मचारी करते थे। कर्मचारियों का कहना है कि वीसी का तर्क था कि अंकतालिका, डिग्री ठीक कराने के नाम पर छात्रों से वसूली की जाती है। इसलिए कर्मचारियों को हटाने के बाद उन्होंने अपने लोगों को सेल में फिट कर दिया।
कर्मचारी और अधिकारियों में है खौफ, गुरुवार का है बेसब्री से इंतजार
गुरुवार का विवि में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। गुरुवार को फिर से सुनवाई पर आने वाले फैसले का सभी को इंतजार है। इसके अलावा विवि में कर्मचारियों का खौफ साफ नजर आ रहा है। विवि में प्रवेश करने वाले हर बड़े वाहन पर सुरक्षाकर्मी बारीकी से नजर रख रहे हैं। जैसे ही गाड़ी द्वार पर आती है, चारों ओर के सुरक्षाकर्मी अलर्ट हो जाते है। यहीं नहीं अधिकारी भी अपने-अपने विभागों की फाइलों को दुरस्त करने में लगे हैं।