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विद्युत नियामक आयोग ने निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोपों बिजली कंपनियों से मांगी रिपोर्ट

By संतोष सिंह 
Updated Date

Electricity Privatization: यूपी की सभी बिजली कंपनियों में प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का 33122 करोड़ सर प्लस निकल रहा है। उसके एवज में बिजली दरों में एक मुश्त 45 फीसदी कमी अथवा अगले 5 वर्षों तक 9 फीसदी कमी सहित 42 जनपदों के निजीकरण मैं बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किए जाने सहित निजीकरण प्रस्ताव को खारिज करने की मांग बिजली दर की सुनवाई में जोर-शोर से उठाया गया था। साथ ही यह बिजली कंपनियों में इन सभी महत्वपूर्ण मुद्दों सहित अनेको मुद्दों पर लिखित आपत्तियां दाखिल की गई थी। जिस पर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 64 3(3) के अनुसार उसका जवाब बिजली कंपनियों से बिना लिए बिजली दर के निर्धारण को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

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उपभोक्ता परिषद द्वारा दक्षिणांचल व पूर्वाचल में निजीकरण के मुद्दे पर अनेकों कमियां उजागर की गई थी और विद्युत अधिनियम 2003 का गलत प्रयोग करने का मुद्दा भी उठाया गया था और साथ ही बिजली दरों में व्यापक बढ़ोतरी को असंवैधानिक करार दिया गया था उपभोक्ता परिषद की पेशबंदी काम आई अंतता उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के निर्देश पर सचिव विद्युत नियामक आयोग द्वारा सभी बिजली कंपनियों से उपभोक्ता परिषद की सभी दाखिल लिखित आपत्तियों पर तत्काल रिपोर्ट तलब की गई है और सभी आपत्तियों को सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक को भेजने के साथ ही पावर कारपोरेशन के रेगुलेटरी अफेयर यूनिट को भी सभी लिखित आपत्तियां भेजते हुए जवाब दाखिल करने का निर्देश जारी किया गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा क्योंकि अब पूरा मामला चाहे वह बिजली दरो में कमी का हो या फिर निजीकरण के प्रस्ताव में बड़े पैमाने पर उजागर की गई भ्रष्टाचार रूपी कर्मियों वह किए गए नियमों के उल्लंघन के आधार पर उसे खारिज किए जाने का हो सभी बिजली कंपनियों को अब खास तौर पर पूर्वांचल व दक्षिणांचल को लिखित जवाब विद्युत नियामक आयोग को दाखिल करना पड़ेगा अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दक्षिणांचल व पूर्वांचल जो लगातार निजीकरण पर कुछ बोलने से पीछे हट रहा था और उसके तरफ से पावर कॉरपोरेशन बैटिंग कर रहा था अब लिखित जवाब दाखिल करना पड़ेगा उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा अब पूरा मामला रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत टैरिफ का अंग बन चुका है ऐसे में निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पूरी तरह आसंवैधानिक होगा अब सबसे बड़ा सवाल लिया है कि बिजली कंपनियों के जवाब के बाद रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत विद्युत नियामक आयोग को भी उसे पर अपना मत देना पड़ेगा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 64(3) के तहत सभी आपत्तियों पर बिना विचार किया आगे नहीं बढ़ सकता विद्युत नियामक आयोग।

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा निजीकरण के मामले पर विद्युत नियामक आयोग को बिजली कंपनियों से सही जवाब लेना पड़ेगा और उसे रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत आम जनता के बीच लाना पड़ेगा बिजली कंपनियों को किसी कंपनी को भी कम दामों पर बेचने का अधिकार नहीं है पूरा निजीकरण का मसौदा ही भ्रष्टाचार का पुलिंदा है इसकी उच्च स्तरीय जांच होना बहुत जरूरी है जिसमें विद्युत नियामक आयोग की भूमिका संवैधानिक रूप से सबसे ज्यादा अहम है कहीं भी कोई चूक हुई तो विद्युत नियामक आयोग को भी सक्षम न्यायालय में इसका जवाब देना पड़ेगा ।

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