पेरिस। फ्रांस के संसदीय चुनाव (France Parliamentary Election) में वामपंथी गठबंधन ने रविवार को धुर-दक्षिणपंथी दलों को शिकस्त देते हुए सबसे ज्यादा सीटें हासिल की हैं। हालांकि कोई भी दल बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा, जिससे देश में त्रिशंकु संसद (Hung Parliament) की आशंका बढ़ गई है। इससे फ्रांस में राजनीतिक उथल-पुथल से देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इसका यूक्रेन में युद्ध, वैश्विक कूटनीति तथा यूरोप की आर्थिक स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
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जानें क्या कहते हैं आंकड़े?
सोमवार को जारी आधिकारिक नतीजों के मुताबिक, संसदीय चुनाव (Parliamentary Election) में तीनों प्रमुख गठबंधन में से कोई भी 577 सदस्यीय नेशनल असेंबली (National Assembly) में बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं हासिल कर सका। नतीजों के अनुसार, वामपंथी गठबंधन ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ 180 से अधिक सीटों पर जीत के साथ पहले स्थान पर रहा, जबकि मैक्रों नीत मध्यमार्गी गठबंधन के खाते में 160 से ज्यादा सीटें गईं और वह दूसरे स्थान पर रहा। वहीं, मरीन ले पेन के नेतृत्व वाली धुर-दक्षिणपंथी पार्टी ‘नेशनल रैली’ और उसके सहयोगी दलों को 140 से अधिक सीटों पर जीत के साथ तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। हालांकि, ‘नेशनल रैली’ का यह प्रदर्शन 2022 के उसके प्रदर्शन से कहीं बेहतर है, जब पार्टी को 89 सीटें हासिल हुई थीं। आधुनिक फ्रांस को अभी तक त्रिशंकु संसद (Hung Parliament) का सामना नहीं करना पड़ा है।
अभूतपूर्व राजनीतिक स्थिति का सामना कर रहा है फ्रांस : प्रधानमंत्री गैब्रियल अटल’
प्रधानमंत्री गैब्रियल अटल (Prime Minister Gabriel Atal) ने कहा कि हमारा देश एक अभूतपूर्व राजनीतिक स्थिति का सामना कर रहा है। वह अगले कुछ हफ्तों में दुनिया का स्वागत करने की तैयारियों में जुटा है। अटल सोमवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा है कि पेरिस ओलंपिक के मद्देनजर वह ‘जब तक जरूरत है’, तब तक पद पर बने रहने के लिए तैयार हैं। वहीं, मैक्रों के राष्ट्रपति कार्यकाल के तीन साल बचे हुए हैं।
समय से पहले संसद भंग करने का राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का यह दांव लगभग हर पड़ाव पर उल्टा पड़ता दिखा
फ्रांस की संसद का कार्यकाल 2027 में खत्म होना था, लेकिन यूरोपीय संघ में नौ जून को बड़ी हार मिलने के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (President Emmanuel Macron) ने समय से पहले संसद भंग कर बड़ा दांव खेला था। उन्होंने कहा था कि एक बार फिर मतदाताओं के बीच जाने से स्थिति ‘स्पष्ट’ होगी। हालांकि, उनका यह दांव लगभग हर पड़ाव पर उल्टा पड़ता दिखा है।