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प्रोफेसर विनय पाठक की याचिका हाइकोर्ट ने की ख़ारिज , एसटीएफ कभी भी कर सकती है गिरफ्तार

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर (Chhatrapati Shahuji Maharaj University Kanpur) के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक (Vice Chancellor Professor Vinay Kumar Pathak) की याचिका हाइकोर्ट ने मंगलवार को ख़ारिज कर दी है। कोर्ट से पाठक को राहत नहीं मिली है। सूत्रों ने बताया कि एसटीएफ (STF)  कभी भी प्रो. पाठक को गिरफ्तार कर सकती है। प्रो. पाठक की तरफ़ से वरिष्ठ वकील LP मिश्र और सरकार की तरफ़ से वरिष्ठ वकील जयदीप माथुर,AAG विनोद शाही ने बहस की थी।

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छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति प्रो. विनय पाठक के मामले में एसटीएफ के हाथ कई अहम सुबूत लगे हैं। एसटीएफ की जांच में कमीशनखोरी के साथ प्रो. पाठक के विभिन्न संस्थानों में तैनाती के दौरान हुए निर्माण कार्य, परीक्षा व नियुक्तियों को शामिल कर लिया गया है।

इसी क्रम में संविदाकर्मियों की नियुक्ति के मामले में दो कंपनियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। इन कंपनियों ने पांच विश्वविद्यायलों में संविदाकर्मियों की नियुक्ति कराई थी।इस धांधली में साक्ष्य हाथ लगते ही एसटीएफ की दो टीमें एकेटीयू और छत्रपति शाहूजी महाराज विवि पहुंचीं। जांच एजेंसी ने इन संस्थानों के करीब 11 कर्मचारियों से पूछताछ की है। यह पूछताछ शनिवार देर शाम हुई। एसटीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक पूछताछ में नियुक्तियों के खेल के अलावा कई अन्य मामलों की भी जानकारी हाथ लगी है। आगरा के डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि से भी ऐसे साक्ष्य हाथ लगे हैं।

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बताया जा रहा है कि फर्जीवाड़ा कर नौकरी करने वालों पर एसटीएफ की नजर है। यह भी पता चला है कि प्रो. पाठक के एकेटीयू के कार्यकाल के दौरान कुछ ऐसे लोगों की भर्ती भी की गई, जिनके प्रमाण पत्र सही नहीं थे। अयोग्य लोगों को असिस्टेंट प्रोफेसर, असिस्टेंट रजिस्ट्रार और सर्विस प्रोवाइडर की नौकरी दे दी गई। इन सभी की सूची तैयार कर ली गई है।

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कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक (Prof Vinay  Pathak) के खिलाफ बीते दिनों लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में IPC के सेक्शन 342, 386, 504 और 506 में FIR दर्ज हुई थी। AKTU के पूर्व कुलपति और वर्तमान में कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक के खिलाफ लखनऊ के इंदिरानगर थाने में निजी कंपनी के एमडी ने बिल पास कराने के नाम पर जबरन वसूली करने,धमकी और गाली गलौज करने का आरोप लगाते हुए कुलपति समेत 2 लोगों को नामजद किया गया था। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए 10 नवंबर तक मामला सुरक्षित रख लिया है।

मामला प्रो. विनय पाठक (Prof Vinay  Pathak) के आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त कार्यभार ग्रहण करने के दौरान का है। डिजिटेक्स टेक्नाेलाजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर डेविड मारियो डेनिस ने प्रो. विनय पाठक के अलावा XLICT कंपनी के मालिक अजय मिश्रा को भी नामजद किया है। जिनकी देर रात STF ने गिरफ्तारी कर ली है। उन्हें जेल भी भेज दिया गया है।

यह है पूरा मामला

FIR के मुताबिक डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में कुलपति रहते हुए प्रो.  विनय पाठक ने वादी से 15% कमिशन वसूले थे। निजी कंपनी का ऑफिस लखनऊ के रंजनीगंधा अपार्टमेंट गोखले मार्ग पर है। कंपनी ने साल 2014-15 से डा.भीमराव अंबेडकर आगरा विश्वविद्यालय में प्री और पोस्ट एग्जाम से जुड़ा काम कर रही थी।

इस बीच साल 2020-21 में UPLC के माध्यम से प्री-पोस्ट एग्जाम से संबंधित काम भी किया। कंपनी के बिल का भुगतान आगरा विश्वविद्यालय में लंबित था। आरोप है कि तब प्रो. विनय पाठक कुलपति थे। इस दौरान वादी ने बिल का भुगतान करने को कहा तो पाठक ने कानपुर विश्वविद्यालय स्थित आवास पर बुलाया। इसके बाद कहा कि बिलों के भुगतान में 15% कमीशन देना होगा।

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जब वादी ने असमर्थता जताई तो अपशब्द कहे और आगरा यूनिवर्सिटी से कंपनी का काम हटवा देने की धमकी दी। परेशान होकर वादी ने कमीशन देने के लिए हामी भरी। इस पर पाठक ने अजय मिश्रा से फोन पर बात कराई और भुगतान होते ही कमीशन पहुंचाने को कहा। बिल पास होने पर वादी ने अजय मिश्रा से संपर्क किया और उनके खुर्रम नगर स्थित आवास पर जाकर कमीशन के 30 लाख रुपये दे दिए।

इस पर अजय ने तीन लाख रुपए कम होने की बात कही और घर में बंधक बना लिया। किसी तरह वादी वहां से निकला और तीन लाख रुपए की व्यवस्था कर अजय को दे दिए। आरोप है कि इसी तरह अलग-अलग बिलों को पास करने के नाम पर आरोपित पीड़ित से रुपए वसूलते रहे। वादी का कहना है कि अजय मिश्रा ने इंटरनेशनल बिजनेस फार्म्स अलवर राजस्थान के खाते में करीब 73 लाख रुपये ट्रांसफर भी करवाएं।

FIR के मुताबिक, साल 2022-23 का काम देने के नाम पर वादी से कमीशन मांगा गया। पर मना करने पर प्रो.  विनय पाठक ने UPDESCO के माध्यम से अजय मिश्रा की कंपनी को काम दिलवा दिया। वादी ने कुल एक करोड़ 41 लाख रुपए कमीशन दिए जाने का आरोप लगाया है। वादी ने जान का खतरा होने और कुछ भी दुर्घटना होने पर विनय पाठक को जिम्मेदार ठहराया है।

 

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