नई दिल्ली: भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है हिन्दू और मुस्लिम के बीच मज़हबी टकराव। कुछ धर्मान्धों और कुछ चालाक नेताओं और धर्म के ठेकेदारों के कारण धार्मिक कटुता बढ़ती ही जा रही है। पर क्या कभी सोचा है कि क्या होगा अगर ये पता चले कि दोनों धर्म एक जैसे ही है बस खुले दिमाग से सोचने भर की देर है।
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हर धर्म यही सीखाता है कि सब एक है फिर भी कुछ लोग अपने धर्म को दुसरे से बड़ा दिखाना चाहते है, ये है कुछ समानताएं जो आपको हंसने पर मजबूर कर देगी ये कितनी सच है और कितनी झूठ फैसला पढने वालों पर है।
नमाज़ संस्कृत शब्द है
ऐसा कहने और समझने वाले लोग भी है। इनके अनुसार नमाज़ बना है संस्कृत के नम: और यजा। ज़रा सोचिये अरब में रेगिस्तान में जब इस्लाम पैदा हुआ तो क्या वहां संस्कृत में बात की जाती थी। है ना अव्वल दर्जे की बेवकूफी वाली बात!
फगवा और हरा एक ही है
ये एक और मूर्खतापूर्ण समानता बनाने की कोशिश है सिर्फ अपने धर्म/मज़हब को दुसरे से बड़ा दिखाने के लिए। इसके अनुसार जिस तरह भारत के हरे भरे जलवायु में पीला या भगवा रंग आसानी से दिख जाता है, इसलिए भगवे रंग को इतना महत्व दिया गया है। उसी तरह अरब देश जहाँ रेगिस्तान है वहां भूरी मिटटी में हरा रंग ज्यादा दिखाई देता है, इसीलिए हरे रंग को ज्यादा महत्व दिया गया और आज हरे रंग को इस्तेमाल किया जाता है। (अरे गिर मत जाइये हंस हंस कर अभी आगे और भी है )
ब्रम्हा और अब्राहम एक है
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जिस तरह हिन्दू धर्म में सृष्टि के रचियेता ब्रम्हा है और उनकी पत्नी सरस्वती उसी तरह इस्लाम में अब्राहम और सारा है। इनके अनुसार अब्राहम अर्थात एक ब्रम्हा, और सारा सरस्वती का अपभ्रंश। वाह, है ना कमाल का तर्क।
रमजान हिंदी शब्द है
ये सबसे कमाल का है, इस धारणा के अनुसार रमजान शब्द हिंदी/संस्कृत के राम और ध्यान से बना है और नमाज़ अदा करते वक्त झुकना एक योगासन है। क्या आप भरोसा कर सकते है इस बात पर या फिर ये सब मन की कोरी कल्पनाएँ ही है।
मक्का में मंदिर है
जिस तरह बहुत से लोग ताजमहल को तेजो महालय नाम का शिव मंदिर बोलते है वैसे ही कुछ लोगों का मानना है कि मक्का भी मंदिर ही है। काबा में रखा पत्थर जिसे हज्रे अस्वाद कहते है दरअसल संस्कृत के शब्द संघे अश्वेत से आया है और यही नहीं कुछ लोगों का तो ये मानना भी है कि भगवान् विष्णु के पैर जिन तीन जगहों पर पड़े थे उनमे से एक मक्का भी है।
है ना ये सब कमाल की समानताएं दोनों धर्मों की। अब इनमे कितनी सही है और कितनी कोरी गप्प ये तो जानने वाले ही जाने। सबके अपने अपने तर्क है इन्हें सच और झूठ साबित करने के, और कुछ लोगों के लिए ऐसी बातें सिर्फ मज़हब के नाम पर आग लगाकर रोटी सकने का काम करती है और उनका धंधा चलने में मदद करती है।