नई दिल्ली। पीलीभीत से भाजपा सांसद सांसद वरुण गांधी (Varun Gandhi) के आक्रामक तेवर पार्टी के लिए गले की हड्डी बनते नजर आ रहे हैं। हालांकि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस मामले में खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है, लेकिन हाल में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (BJP National President JP Nadda) की तरफ से घोषित राष्ट्रीय कार्यकारिणी (National Executive) से वरुण गांधी (Varun Gandhi) व सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद मेनका गांधी (BJP MP Maneka Gandhi) को बाहर कर स्पष्ट संकेत दे दिया है।
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भाजपा (BJP) और केन्द्र सरकार में 2017 से आज तक वरुण गांधी (Varun Gandhi) को उनके अनुभव और कद को देखते हुए पद, प्रतिष्ठा या मान सम्मान उसके अनुरुप नहीं मिल पाया। उनकी मां और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी को भी 2019 चुनाव के बाद से कैबिनेट में जगह नहीं दी गई।
तो वहीं मौके नजाकत भांपते हुए वरुण गांधी (Varun Gandhi) केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। हाल के दिनों में तीनों कृषि कानूनों, एमएसपी(MSP), लखीमपुर हिंसा (Lakhimpur Violence) मामले को मुद्दा बनाकर शीर्ष नेतृत्व को घेर चुके हैं। जबकि उनकी मां मेनका गांधी (Maneka Gandhi) राष्ट्रीय कार्यकारिणी (Maneka Gandhi) से आउट किए जाने पर मीडिया से कहा था कि यह तय करना शीर्ष नेतृत्व आधिकार होता है कि किसे कार्यकारिणी में रखे और किस को आउट करे। उन्होंने कहा कि यह कोई चर्चा का विषय नहीं है।
तो पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि मेनका गांधी और वरुण गांधी (Varun Gandhi) के भाजपा में दिन लद गए हैं। कोई तंज भरे लहजे में कहता है कि भाजपा भला गांधियों (वरुण और मेनका) को क्यूं ढोए जा रहे हैं। यूपी के एक नेता ने हाल में तो सवाल उठाते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हमेशा वरुण गांधी (Varun Gandhi) आक्रामक हो जाते हैं, 2017 में भी हुए थे। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या वरुण गांधी (Varun Gandhi) इस बार कोई बड़ा फैसला लेने वाले हैं?
क्या वरुण गांधी (Varun Gandhi) छोड़ देंगे भाजपा ?
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वरुण गांधी (Varun Gandhi) इस बारे में अभी कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं। मीडिया से खुद को दूर ही रखी है, लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता इस तरह की संभावनाओं से जरूर उत्साहित हैं। प्रयागराज के दो नेता कुछ दिन पहले पोस्टर लगाकर वरुण गांधी (Varun Gandhi) का तो स्वागत कर डाला था । वरुण गांधी के स्वागत पोस्टर में लिखा था, ‘दुःख भरे दिन बीते रे भइया अब सुख आयो रे। इसमें वरुण गांधी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का भी फोटो था। इरशाद उल्ला और बाबा अभय अवस्थी की तस्वीर लगी थी। दोनों को ही कांग्रेस का वरिष्ठ नेता बताया गया है। वरुण के पिता संजय गांधी (Sanjay Gandhi) द्वारा कांग्रेस में लाए कुछ नेता अब बूढ़े हो रहे हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में आने वाले एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री का कहना है कि समझदारी से राजनीति करने की इच्छा शक्ति लेकर वरुण को कांग्रेस में शामिल होने का प्रयास करना चाहिए।
हालांकि, वह कहते हैं कि यह एक संवेदनशील मसला है और बिना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) की सहमति के यह संभव नहीं है। यह बहुत आसान फैसला भी नहीं है। वह कहते हैं कि इसे वरुण गांधी (Varun Gandhi) और मेनका गांधी (Maneka Gandhi) भी अच्छी तरह समझते हैं। हालांकि, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। लेकिन कांग्रेस मुख्यालय (Congress Headquarters ) से लेकर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला (Congress media in-charge Randeep Surjewala) की टीम भी इसे लेकर खास प्रतिक्रिया नहीं देते।
कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में एक चेहरा चाहिए
वरुण गांधी (Varun Gandhi) के कांग्रेस में शामिल होने के अपने-अपने कारण हैं। पहला कारण तो वरुण गांधी (Varun Gandhi) के किसान आंदोलन पर आ रहे लगातार बयान हैं। जबकि दूसरा कारण कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के मजबूत चेहरे की तलाश है। अभी तक कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी( General Secretary Priyanka Gandhi) खुद को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पा रही हैं। कांग्रेस नेता पीएल पुनिया(Congress leader PL Punia) भी प्रियंका को राज्य के भावी मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करने के पक्ष में नहीं है। गांधी परिवार से सहानुभूति रखने वाले कांग्रेस से जुड़े नेताओं को प्रियंका के बाद इसके लिए वरुण गांधी उपयुक्त चेहरा लगते हैं। इसका एक कारण वरुण का स्व. संजय गांधी का बेटा होना है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि ऐसा होने के बाद अमेठी रायबरेली से लेकर पूरे पूर्वांचल तक राजनीति का माजरा बदल जाएगा।
वरुण गांधी (Varun Gandhi) के बोल, उनका तौर तरीका अभी कांग्रेस के नेताओं की इस सोच, संभावना और उम्मीद को बल दे देता है, क्योंकि वह किसान नेता राकेश टिकैत (Farmer leader Rakesh Tikait ) की मांग का समर्थन करते हैं। वह किसान नेता सरदार वीएम सिंह जैसे लोगों से कुछ दूरी बनाकर रखते हैं। सरकार पर एमएसपी (MSP) की गारंटी देने का लगातार दबाव बना रहे हैं। वरुण गांधी किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन करने वाले भाजपा के नेता और सांसद हैं। उनके बयान भाजपा के भीतर भी काफी खलबली मचा रहे हैं।
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बीते शुक्रवार को वरुण गांधी (Varun Gandhi) ने यहां तक कह दिया कि वह सरकार के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाएंगे नहीं, बल्कि किसानों के मुद्दे पर कोर्ट जाएंगे। बता दें कि यह वरुण गांधी का स्मार्ट मूव है। उन्हें पता है कि केन्द्र और प्रदेश सरकार किसान के मुद्दे पर उनकी सुनने वाली नहीं है। इसलिए वहां कोई भी अपील करके अपना राजनीतिक कद गिराने का खतरा मोल लेना होगा। दूसरी तरफ कोर्ट जाने का बयान देकर वह किसानों के साथ-साथ सभी वर्गों में अपनी राजनीतिक छवि को बनाए रख सकेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि 41 साल के वरुण गांधी समझदारी के साथ राजनीति करते हैं। वह काफी रिसर्च और होमवर्क करते रहते हैं।