नई दिल्ली। दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देशों में शामिल जापान (Japan) एक ऐसा कदम उठाने जा रहा है, जिससे चीन-दक्षिण कोरिया समेत कई देशों को खतरा हो सकता है। इसमें सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि यूएन ने भी जापान को इसके लिए मंजूरी दे दी है। दरअसल, जापान अपने खराब हो चुके न्यूक्लियर प्लांट में मौजूद ट्रीटेड रेडियोएक्टिव पानी (Treated Radioactive Water) को प्रशांत महासागर में छोड़ने जा रहा है।
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जापान (Japan) को के लिए यूएन (UN) के न्यूक्लियर वॉचडॉग (Nuclear Watchdog) से अप्रूवल भी मिल गया है। इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के चीफ राफेल ग्रौसी मंगलवार को जापान पहुंचे थे। यहां राफेल ग्रौसी ने जापानी पीएम फूमियो किशिदा से मिलकर सेफ्टी रिव्यू किया। इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने कहा कि रेडियोएक्टिव पानी (Radioactive Water) को छोड़ने का जापान की योजना सेफ्टी स्टैंडर्ड्स (Plan Safety Standards) के अनुसार सही है। हालांकि, जापान में तटीय क्षेत्रों में रह रहे लोग और चीन समेत कई देश इसका विरोध कर रहे हैं।
बता दें कि मार्च 2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट (Nuclear Plant of Fukushima) का कूलिंग और इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम ठप हो गया था। गर्मी की वजह से वहां मौजूद तीनों रिएक्टर्स के कोर पिघल गए थे, जिसके चलते काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन (Radiation) फैला था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यूक्लियर प्लांट (Nuclear Plant) से पानी छोड़े जाने के प्लान की घोषणा 2021 में की गई थी। जापान की रेगुलेटरी बॉडी ने 30 जून को ही अपना इंस्पेक्शन पूरा कर लिया था।
यूएन की जांच के बाद प्लांट की देखभाल कर रही कंपनी TEPCO को एक हफ्ते के अंदर पानी छोड़ने का परमिट मिल सकता है। प्रशांत महासागर में 132 करोड़ लीटर पानी छोड़े जाने को लेकर जापान की फिशिंग इंडस्ट्री (Fishing Industry) और सिविल सोसाइटी ग्रुप्स (Civil Society Groups) ने भी चिंता जताई है। कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर (TEPCO) ने बताया कि प्लांट में मौजूद पानी के ट्रीटमेंट के बाद उसे एक हजार टैंकों में स्टोर किया गया है। इस पानी को वहां से हटाए जाना इसलिए भी जरूरी है ताकि न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट किया जा सके।
चीन और साउथ कोरिया को इस बात का डर
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जापान के प्रशांत महासागर में इस तरह से न्यूक्लियर पावर प्लांट (Nuclear Power Plant) का पानी छोड़ने से डरने की वजह तर्कसंगत है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1940 के दशक में साउथ पैसिफिक में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने एक के बाद एक कई न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। जिसका दुष्प्रभाव वहां के मार्शल आईलैंड पर रहने वाले लोगों पर अब तक है।
हालांकि, न्यूक्लियर टेस्ट (Nuclear Test) करने और न्यूक्लियर रिएक्टर्स (Nuclear reactors) को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया पानी महासागर में छोड़ने में काफी फर्क है। लेकिन इसके असर को नकारा नहीं जा सकता है। 2011 की सुनामी के बाद साउथ कोरिया जैसे कई देशों ने सुरक्षा के लिहाज से फुकुशिमा से सीफूड और दूसरी खाने की चीजों के इम्पोर्ट पर रोक लगा दी थी।