mangal pandey punyatithi: अंग्रेजों के क्रूर अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब के देने लिए 1856 में भारत माता के वीर सपूत मंगल पांडे ने गोरों की हुकुमत को हिला कर रख दिया था। देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले वीर शहीद मंगल पांडे की आज पुण्यतिथि है। आइये जानते है उस कहानी को जिसे आजादी के अमर बलिदानियों ने प्राण न्योछावर कर लिखा है। मंगल पांडे कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे। उनकी भड़काई क्रांति की आग से ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) हिल गई थी।
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सिपाहियों का मानना था धार्मिक भावनाएं होती हैं आहत
कलकत्ता से 16 मील दूर बैरकपुर सैनिक छावनी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह की गवाह बनी। गोरी हुकूमत के खिलाफ अगर आजादी की लड़ाई की पहली चिंगारी असल में मंगल पांडे ने भड़काई थी। 1856 से पहले भारतीय सिपाही ब्राउन बीज नाम की बंदूक का इस्तेमाल करते थे।1856 में भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल के लिए एक नई बंदूक लाई गई लेकिन इस बंदूक को लोड करने से पहले कारतूस को दांत से काटना पड़ता था। इन राइफलों में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था। सिपाहियों का मानना था कि इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। मंगल पांडे ने इसका विरोध किया और विद्रोह कर दिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा
मंगल पांडे ने बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसरों पर हमला कर घायल कर दिया था। उन्हें बैरकपुर में 29 मार्च की शाम अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाने और तलवार से हमला करने के साथ ही साथी सैनिकों को भड़काने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई। उस समय बैरकपुर छावनी में फांसी की सजा देने के लिए जल्लाद रखे जाते थे लेकिन उन जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से साफ मना कर दिया। तब अंग्रेजों ने बाहर से जल्लाद बुलाए। यह समाचार मिलते ही कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा। इसी वजह से आनन फानन में करीब चुपचाप मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 की तड़के जल्दी ही फांसी पर लटका दिया गया।