नौतनवा महराजगंज(पर्दाफाश) नौतनवा कस्बे में स्थित माता बनैलिया मंदिर के वार्षिकोत्सव को लेकर मंदिर प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 20 जनवरी को वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाने के लिए स्थानीय श्रद्धालुओं का जत्था भी तैयारी को पूरा करवाने में जुट गया है। श्रद्धालु कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
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मंदिर प्रबंधक रिषि राम थापा ने बताया कि 20 जनवरी 1991 को प्राचीन मंदिर के जगह भव्य मंदिर का निर्माण हुआ था। उसी दौरान मंदिर में मां बनैलिया की भव्य मूर्ति भी स्थापना की गई थी। तभी से इस दिन को मां बनैलिया मंदिर के वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बीते 32 वर्षों से लगातार इस दिन को नगरवासी त्योहार के रूप में एकत्रित होकर भव्य तरीके से मनाते चले आ रहे हैं। इस बार भी मंदिर के 32वें वार्षिकोत्सव मनाने को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। 20 जनवरी को मंदिर परिसर से निकलने वाले भव्य शोभायात्रा को लेकर एक तरफ जहां मंदिर समिति के लोग परिसर की साफ-सफाई, लाइटिंग, सजावट, ट्रालियों पर सजने वाली झांकियों व भंडारा आदि की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं।
वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोगों द्वारा भी शोभायात्रा के स्वागत हेतु तोरणद्वार बनाया जा रहा है। सैकड़ों लोग चौक-चौराहों के सजावट एवं स्टॉल लगाकर प्रसाद वितरण की तैयारियों में जुटे हुए हैं। शोभायात्रा मंदिर से निकलकर नगर भ्रमण करते हुए वापस मंदिर परिसर में पहुंचेगी। वहां आरती एवं भंडारे के बाद 21 जनवरी को जागरण के बाद कार्यक्रम समाप्त हो जाएगा।
माँ बनैलिया देवी मंदिर का परिचय
पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा को जोड़ने वाला नगर नौतनवा में वन देवी अर्थात मां बनैलिया के नाम से विख्यात मंदिर स्थित है। मंदिर के इतिहास के सम्बंध में बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान राजा विराट के भवन से लौटते समय पाण्डवों ने मां वन शक्ति की यहां पर अराधना किया था। जिससे प्रसन्न होकर मां ने पिण्डी स्वरूप में पाण्डवों को दर्शन दिया। कालांतर में मां की पिण्डी खेतों के बीच समाहित हो गई। एक दिन खेत जोत रहे किसान केदार मिश्र को स्वप्न में मां ने कहा कि यहां पर मेरी पिण्डी खोजकर मेरे मंदिर का निर्माण करो। इसके बाद केदार मिश्र ने सन 1888 में यहां पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया। जो आज विशालकाय मंदिर के रूप में स्थापित हो चुका है। जिसकी स्थापना 20 जनवरी 1991 को विधि पूर्वक हुई। प्रतिवर्ष इस दिन को वार्षिकोत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां पर आने वाले हर भक्त की इच्छा मां पूरा करती है। चूंकि मां को हाथी बहुत पसंद है, इसलिए इच्छा पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर हाथी की मूर्ति चढ़ाते हैं।
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मंदिर का वास्तु
मंदिर का निर्माण वृताकार अरघा नुमा संरचना है,जिसके अंदर मां के नौ स्वरूपों को स्थापित किया गया है। केन्द्र में मां बनैलिया की भव्य प्रतिमा शोभायमान है। मंदिर वर्ताकार होने के कारण मां का परिक्रमा मंदिर के अंदर ही जाती है।
कैसे पहुंचे
माँ के मंदिर पहुंचने के लिए रेल एवं सड़क दोनो मार्गों से साधन उपलब्ध है। गोरखपुर से चलकर नौतनवा आने पर ई.रिक्शा एवं आटो की मदद से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर पर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पर देश के कोने-कोने यात्री आते है वही 5 किलो मीटर दूर पर स्तिथ मित्र राष्ट्र नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं। मंदिर परिसर में तीर्थ यात्रियों के रात्रि भोजन,निवास की व्यवस्था भी है ।
महराजगंज ब्यूरो प्रभारी विजय चौरसिया की रिपोर्ट