नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक विवाहित महिला की 26 सप्ताह की गर्भावस्था (26 Weeks Pregnancy)समाप्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि एम्स रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे मे कोई असमान्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि तय समय पर एम्स डिलीवरी कराएगा।
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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि गर्भावस्था 26 सप्ताह और 5 दिन की है। इस प्रकार गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना MTP अधिनियम की धारा 3 और 5 का उल्लंघन होगा, क्योंकि इस मामले में मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है। यह भ्रूण की असामान्यता का मामला नहीं है। CJI ने कहा कि हम दिल की धड़कन को नहीं रोक सकते।
अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल पूर्ण न्याय करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल हर मामले में नहीं करना चाहिए। यहां डॉक्टरों को भ्रूण की समस्या का सामना करना पड़ेगा। उचित समय पर AIMS द्वारा डिलीवरी कराई जाएगी। यदि दंपति बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ना चाहते हैं तो केंद्र माता-पिता की सहायता करेगा। बच्चे को गोद देने का विकल्प माता-पिता पर निर्भर करता है।
बता दें कि सुनवाई के दौरान कॉलिन गोंजालेविस ने कहा कि अजन्मे बच्चे का कोई अधिकार नहीं है। मां का ही अधिकार है। इस संबंध में कई अंतरराष्ट्रीय फैसले हैं। WHO की भी मेंटल हेल्थ को रिपोर्ट है। CJI ने कहा कि भारत प्रतिगामी नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में क्या हुआ और देखें कि रो बनाम वेड मामले का क्या हुआ? यहां भारत में 2021 में विधानमंडल ने संतुलन बनाने का काम किया है। अब यह अदालतों को देखना है कि संतुलन बनाने का काम सही है या नहीं।
क्या हम इन बढ़ते मामलों में ऐसे कदम उठाने की विधायिका की शक्ति से इनकार कर सकते हैं? हमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका को वह शक्ति क्यों देने से इनकार करना चाहिए और क्या हम इससे अधिक कुछ कर सकते हैं? प्रत्येक लोकतंत्र के अपने अंग होते हैं और उन्हें कार्य करना चाहिए। आप हमें WHO के बयान के आधार पर हमारे क़ानून को पलटने के लिए कह रहे हैं? हमें नहीं लगता कि ऐसा किया जा सकता है।