Advertisement
  1. हिन्दी समाचार
  2. उत्तर प्रदेश
  3. Lucknow University में समाजवादी छात्रसभा ने मनाई शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती

Lucknow University में समाजवादी छात्रसभा ने मनाई शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। समाजवादी छात्रसभा (Samajwadi chhatra sabha) ने शहीद चंद्रशेखर आजाद (Shaheed Chandrashekhar Azad) की जयंती (birth anniversary) पर लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) में स्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की । माल्यार्पण से पहले प्रतिमा की साफ-सफाई भी की गई।

पढ़ें :- हमको EVM से नहीं बैलेट पेपर से चुनाव चाहिए, इसके लिए चलाएंगे देशव्यापी अभियान...मल्लिकार्जुन खरगे

इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए समाजवादी छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देव ने कहा कि सन् 1919 में गांधीजी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आन्दोलन में आजाद ने अल्पायु में ही गिरफ्तारी देकर अपने क्रांतिकारी होने का परिचय दे दिया था। उसके बाद अचानक से असहयोग आंदोलन बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये।

इसके पश्चात् सन् 1927 में ‘बिस्मिल’ के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुंच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।ऐसा भी कहा जाता हैं कि आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिश हुक़ूमत ने 700 लोग नौकरी पर रखे हुए थे।

समाजवादी छात्रसभा लखनऊ के जिलाध्यक्ष महेंद्र कुमार यादव ने बताया कि आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गांव में बीता एवं बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया।

असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी 1922 में (चौरी चौरा) की घटना के पश्चात् बिना किसी से पूछे (गांधीजी) ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ (एचआरए) का गठन किया।

पढ़ें :- Rajya Sabha Bye-Election : राज्यसभा की 6 सीटों पर उपचुनाव की तारीख का ऐलान; इन राज्यों में खाली हुई थी सीटें

चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गांव के अमीर घरों में डकैतियां डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके तो यह तय किया गया कि किसी भी औरत के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गांव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गांव ने हमला कर दिया। कार्यक्रम में मुख्यरूप से छात्रसभा के प्रदेश उपाध्यक्ष ओम यादव, दीपू श्रीवास्तव, अजित विधायक समेत सैकडों छात्रों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

Advertisement