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संस्कृति पर्व 25 : वेद वाणी संस्कृत की ही लोकभाषा है भोजपुरी , भाषा को वैश्विक परिदृश्य में लोक से जोड़ेगा विश्व भोजपुरी सम्मेलन

By अनूप कुमार 
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देवरिया । विश्व भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना भूमि देवरिया में विश्व भोजपुरी सम्मेलन, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में दो दिवसीय अधिवेशन संस्कृति पर्व के रूप में 13 और 14 दिसंबर को देवरिया के राजकीय इंटर कॉलेज देवरिया के प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है।  इस आयोजन में देश और दुनिया में भोजपुरी साहित्य, संस्कृति और भाषा पर गंभीर कार्य कर रहे प्रख्यात विद्वान, संस्कृति कर्मी, लेखन, साहित्यकार, रंग कर्मी, गायक, कवि और संस्कृति के अध्येता एक साथ एक मंच पर सम्मिलित होकर भोजपुरी की बात करने जा रहे हैं।

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अधिवेशन के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि दिल्ली से सांसद तथा लोकप्रिय गायक और अभिनेता श्री मनोज तिवारी मृदुल जी होंगे। जिसके दूसरे सत्र में लोकरंग कार्यक्रम के तहत सुविख्यात लोक गायिका कल्पना पटवारी, सुविख्यात गायक भरत शर्मा व्यास, शिल्पी राज, आलोक कुमार तथा मदन राय सहित क़रीब एक दर्जन कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियाँ दी जाएंगी।

कार्यक्रम के दूसरे दिन समापन सत्र के तहत 14 दिसम्बर को दो सत्र आयोजित होंगे। इसमें पहला सत्र बतकही है। जिसमें बौद्धिक विमर्श होगा। जबकि दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें भोजपुरी, हिन्दी और उर्दू  के रचनाकार शामिल होंगे। डा. कमलेश राय, भालचंद्र त्रिपाठी, बादशाह प्रेमी, सुभाष यादव तथा भूषण त्यागी रचना पाठ करेंगे। साथ ही प्रख्यात शायरा शबीना अदीब, शायर अज़हर इक़बाल, डा. मजीद देवबंदी, अफ़ज़ल इलाहाबादी, डा. जयति ओझा, सीमा नयन, आकृति विज्ञा अर्पण, सलीम, सरोज पांडेय, राहुल राज, शाद सिद्दीकी, ओम शर्मा ओम, डा. आशुतोष त्रिपाठी सहित अनेक नामचीन कवि मंच से प्रस्तुतियाँ देंगे। साथ ही राज्यपाल हिमाचल प्रदेश महामहिम शिव प्रताप शुक्ल, आयरलैंड में भारत के राजदूत श्री अखिलेश मिश्र वर्चुअल रूप से इस अधिवेशन को संबोधित करेंगे । यह एक ऐसा वैश्विक आयोजन है जो भोजपुरी को भाषा के रूप में उसका स्थान अवश्य सुनिश्चित कराएगा। देवरिया ही भोजपुरी भाषा की केंद्रीय भूमि है, इसलिए यह आयोजन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

संस्कृति पर्व के नाम से आयोजित भोजपुरी के इस साहित्यिक सांस्कृतिक यज्ञ के संयोजक और विश्व भोजपुरी सम्मेलन , उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने देवरिया में आयोजित एक प्रेस वार्ता में इस आयोजन और भोजपुरी भाषा की अस्मिता और महत्ता पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए इस आयोजन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पंडित विद्यानिवास मिश्र जी भोजपुरी की मिट्टी की अति विशिष्ट सुगंध हैं। संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और फारसी की विराट साहित्यिक विरासत के अग्रगण्य यात्री होकर भी पंडित जी को भोजपुरी को भाषा का अधिकार प्राप्त कराने की बड़ी धुन थी। जीवन भर अति उत्कृष्ट साहित्य रचते और विस्तारित करते पंडित विद्या निवास मिश्र जी ने वर्ष 1995 में भोजपुरी की केंद्रीय अंग सत्ता मानी जाने वाली देवरिया की धरती से एक आरंभ किया, नाम दिया विश्व भोजपुरी सम्मेलन।

सेतु के सन्निधि में विश्व भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना के बाद भोजपुरी को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषा के रूप में स्थान दिलाने के लिए चल रहे पूर्व के संघर्षों को इस नई आंदोलन यात्रा से बहुत गति मिली। इसके हाल तक संरक्षक रहे  अरुणेश नीरन और वर्तमान अध्यक्ष अजीत दुबे के अलावा अनेक यात्रियों ने एक लंबी यात्रा की है ।
त्रिपाठी ने बताया कि भोजपुरी न केवल भारत वरन् विश्व के अनेक देशों में व्यवहृत होने वाली एक समृद्ध भाषा है जिसका विपुल साहित्य है। वर्तमान में इस भाषा को व्यवहृत करने वाले लोगों की संख्या लगभग 30 करोड़ है। इस दृष्टि से देखें तो यह भारत के साथ-साथ विश्व की सांस्कृतिक पहचान में योगदान देने वाली एक महत्वपूर्ण भाषिक संस्कृति भी है। भारत में बिहार और उत्तर प्रदेश में सरकारी स्तर पर किसी न किसी रूप में इसे सम्मान और मान्यता प्राप्त है। भारत की लोक संस्कृति यदि सबसे अधिक किसी भाषा और साहित्य में अभिव्यक्त हुई है तो वह भोजपुरी है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी भोजपुरी भाषियों का निर्णायक योगदान है। देवनागरी इसकी लिपि है। उन्होंने बताया कि हमारे संगठन “विश्व भोजपुरी सम्मेलन”  की उत्तर प्रदेश इकाई की ओर से यह दो दिवसीय(13 एवं 14 दिसंबर ) प्रांतीय अधिवेशन होने जा रहा है। हमारे संगठन के 11 प्रांतों से बड़ी संख्या में भोजपुरी के विद्वानों और प्रतिनिधियों के भाग लेने की भी संभावना है।लोककला, लोकसंस्कृति, लोकसाहित्य तथा लोक परंपराओं के संरक्षण और संवर्द्धन की दृष्टि से यह विशाल आयोजन पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में होना सुनिश्चित है। इस अवसर के लिए आयोजन समिति ने एक स्मारिका प्रकाशित करने का निर्णय भी लिया है जिसमें भोजपुरी, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में लिखी गईं रचनाएँ शामिल की जा रही हैं। यह स्मारिका स्वयं में भोजपुरी भाषा की आधिकारिक दस्तावेज बनेगी।

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त्रिपाठी ने कहा कि सृष्टि में भोजपुरी तब से है जब से इसका अस्तित्व है। मूलतः संस्कृत से लोकस्वर के रूप में उपज कर भोजपुरी ने सामान्य मानव सभ्यता में संवाद के माध्यम के रूप में खुद को स्थापित किया है। यह एक मात्र भाषा है जिसमे वैयाकरण की दृष्टि से संस्कृत से समानता की क्षमता है। भोजपुरी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमे किसी भी क्रिया या संज्ञा का कोई पर्यायवाची नहीं है , बल्कि हर क्रिया और  संज्ञा के लिए अलग शब्द हैं। यहाँ शब्दो की अद्भुत ढंग से प्रचुरता है। यही वजह है कि संवाद सम्प्रेषण की जो क्षमता भोजपुरी में है वह किसी अन्य भाषा में संभव ही नहीं हो सकता।

त्रिपाठी ने कहा कि भोजपुरी संस्कृत से ही निकली है। उनके कोश-ग्रन्थ (‘व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं’) में मात्र 761 धातुओं की खोज उन्होंने की है, जिनका विस्तार “ढ़” वर्ण तक हुआ है। इस प्रबन्ध के अध्ययन से ज्ञात होता है कि 761 पदों की मूल धातु की वैज्ञानिक निर्माण प्रक्रिया में पाणिनि सूत्र का अक्षरश: अनुपालन हुआ है। इस कोश-ग्रन्थ में वर्णित विषय पर एक नजर डालने से भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्पष्ट परिलक्षित होती है। वस्तुत: भोजपुरी-भाषा संस्कृत-भाषा के अति निकट और संस्कृत की ही भांति वैज्ञानिक भाषा है। भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं का वाक्य-प्रयोग विषय को और अधिक स्पष्ट कर देता है। प्रामाणिकता हेतु संस्कृत व्याकरण को भी साथ-साथ प्रस्तुत कर दिया गया है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं की व्युत्पत्ति को स्रोत संस्कृत-भाषा एवं उसके मानक व्याकरण से लिया गया है।

भाषा के अर्थ में ‘भोजपुरी’ शब्द का पहला लिखित प्रयोग रेमंड की पुस्तक ‘शेरमुताखरीन’ के अनुवाद (दूसरे संस्करण) की भूमिका में मिलता है। इसका प्रकाशन वर्ष 1789 है। इसके नामकरण के बारे में कई तरह के मत मिलते हैं। जिनमें से तीन मत काफी प्रचलित हैं। पहले मत के अनुसार राजा भोजदेव (सन् 1005-55 ई.) के नाम पर भोजपुर पड़ा। इस मत के समर्थक जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन, उदयनारायण तिवारी आदि हैं। इस संबंध में उदयनारायण तिवारी ने लिखा है कि “भोजपुरी बोली का नामकरण शाहाबाद जिले के भोजपुर परगने के नाम पर हुआ है।

शाहाबाद जिले में भ्रमण करते हुए डॉ. बुकनन सन् 1812 ई. में भोजपुर आए थे। उन्होंने मालवा के भोजवंशी ‘उज्जैन’ राजपूतों के चेरों जाति को पराजित करने के संबंध में उल्लेख किया है। आधुनिक इतिहासकारों ने मालवा के राजा भोजदेव या उनके वंशजों के भोजपुर विजय को संदिग्ध् माना हैं। इसपर विचार करते हुए दुर्गाशंकर सिंह नाथ ने लिखा है कि (मालवा के भोज का)” भोजपुर-भोजदेव पूर्वी प्रांत में कभी नहीं आए। दूसरे मत के अनुसार इसका नामकरण वेद से जोड़ा गया है।

वेद में भोज शब्द का प्रयोग मिलता है। इस मत के समर्थकों में डा.ए.बनर्जी शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, जितराम पाठक का नाम प्रमुख है। एक तीसरा मत भी है जिसके अनुसार भोजपुरी भाषा का नामकरण कन्नौज के राजामिहिर भोज के नाम पर भोजपुर बसा था। इस मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता और परमानंद पांडेय हैं। परमानंद पांडेय के अनुसार “ गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है। मिहिरभोज का शासनकाल सन् 836 ई. के आसपास माना जाता है।

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भोजपुरी भाषा का इतिहास
भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है – 1000 से अधिक साल पुरानी! गुरु गोरख नाथ 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीर दास (1297) का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भोजपुरी भाषा प्रधानतया पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्रों में बोली जाती है। भोजपुरी एक बड़े भूभाग की भाषा है। यह पूर्वी बिहार और पश्चिमी उत्तर – प्रदेश के साथ-साथ झारखंड के कुछ क्षेत्रों के लोगों की मातृभाषा है। इसके आलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी जिलों से सटे नेपाल के कुछ हिस्सों में यह बोली जाती है। यह बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, सासाराम और भभूआ जिलों में तथा उत्तरप्रदेश के बलिया, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, गोरखपुर महाराजगंज, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, मिर्जापुर के लोगों की मातृभाषा है। झारखंड में यह पलामू, गढ़वा और लातेहार जिलों के कुछ भागों में बोली जाती है।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुछ भागों में बोलनेवालों की जनसंख्या 26 करोड़ के आस-पास है। नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रूपनदेही और कपिलवस्तु में भोजपुरी बोली जाती है। वहाँ के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी ढ़ाई लाख से अधिक है। जो वहाँ की जनसंख्या के लगभग नौ प्रतिशत है। भोजपुरी सही मायने में विश्वभाषा है। भारत और नेपाल के अलावे यह मारीशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रीनीडाड, नीदरलैंड जैसे कई देशों की बड़ी आबादी इसे बोलती-समझती है। रोजी – रोजगार की भाषा नहीं रहने के कारण नई पीढ़ी इससे कट रही है।

सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने बताया कि भोजपुरी में पिछले कुछ समय से अनावश्यक, अश्लील साहित्य और गीतों की एक ऐसी परंपरा विकसित हुई है जिसने भोजपुरी के मर्म पर प्रहार किया है। संस्कृति पर्व के इस आयोजन में उस पर बहुत गंभीरता से विचार कर भोजपुरी की मूल मधुर, संस्कारयुक्त थाती को संरक्षित करने पर मंथन होगा और उसके उपाय भी तलाशे जाएंगे।

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