Seasonal Affective Disorder : मौसम का असर हम सबके मन पर भी पड़ता है। मौसम जैसे बदलता है कुछ लोगों में उदासी और आलस का असर बढ़ने लगता है। अक्सर लोग इस तरह के बदलाव को समझ नहीं पाते और इसका कोई निदान नहीं करते है। सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर का मतलब होता है मौसम में बदलाव के दौरान समस्याएं महसूस करना। कई लोग मौसम बदलने के बाद उदास और बीमार महसूस करते हैं। ये समस्या किसी को भी हो सकती है, लेकिन यह अक्सर महिलाओं और युवा वयस्कों में देखने को ज्यादा मिलता है।
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डॉक्टरों का ऐसा मानना है कि महिलाओं में सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर हार्मोनल परिवर्तनों से संबंधित हो सकता है क्योंकि महिलाओं में हार्मोन चेंज होते रहते हैं। बता दें वैसे पतझड़ और सर्दी के मौसम में सूरज (Sun) की रोशनी कम होती है, जिस कारण मस्तिष्क कम सेरोटोनिन(मूड को कंट्रोल करने वाले दिमाग के मार्गों से जुड़ा एक रसायन) बना पाता है । जिस वजह से कई महिलाओं में थकान, डिप्रेशन और वजन बढ़ने के लक्षणों के साथ डिप्रेशन की भावना पैदा होती है।
सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण सर्दी की शुरुआत में शुरू हो सकते हैं । धीरे-धीरे सर्दी का मौसम खत्म होने पर इसके लक्षण कम हो सकते हैं। बताते चलें कि सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर दो प्रकार के होते हैं, विंटर-पैटर्न और समर-पैटर्न। इनके लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं। समर-पैटर्न एसएडी (सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर) लगभग 10 प्रतिशत मामलों में होता है। किसी भी पैटर्न के लक्षण लगभग 4 से 5 दिन तक रहते हैं, और इसमें शामिल हो सकते हैं।
स्लीप पैटर्न में बदलाव
स्लीप पैटर्न में बदलाव होने के साथ ही नींद न आने की समस्या,एनर्जी की कमी,ध्यान लगाने में परेशानी,आत्महत्या के विचार आने की समस्या,कार्य में मन न लगना,अकेले रहना,पूरा दिन थकान महसूस होना,ज्यादा भूख लगना जैसे लक्षण दिखते है।
ऐसी समस्या में अपने ऊपर पूरा ध्यान दे कर उदासी कम की जा सकती है। इन कार्यों को करने से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है। परेशानी समाप्त करने के लिए किसी ठंडी जगह वेकेशन प्लान करना। पूरी नींद लेना। गर्मियों में कम रोशनी में और पर्याप्त छाया वाले स्थान पर बैठना। ठीक से पूरी डाइट लेना।लोगों से मिलते जुलते रहना।