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हर भारतीय के खून में है धर्मनिरपेक्षता ,नफरती भाषणों में मत पड़िए : एम वेंकैया नायडू

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। देश के उपराष्ट्रपति (Vice President) एम वेंकैया नायडू (M Venkaiah Naidu) ने सोमवार को धर्म पर की जा रही राजनीति को लेकर सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने देशवासियों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि किसी और के धर्म की आलोचना करना और समाज में मतभेद पैदा करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। नायडू ने कहा कि इस देश में हर एक व्यक्ति को अपने विश्वास के आधार पर धर्म को मानने की इजाजत है।

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यह संदेश नायडू ने केरल में कैथोलिक समुदाय के एक आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक संत कुरियाकोस इलियास चावरा की 150वीं पुण्यतिथि (Kuriakose Ilyas Chavra’s 150th death anniversary) के अवसर पर दिया। श्री नायडू मन्नानम में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। उन्होंने संबोधन के दौरान कहा कि अपने धर्म को मानिए, लेकिन नफरती भाषणों (Hate Speech) में मत पड़िए। उन्होंने कहा कि इस तरह के काम हमारी संस्कृति, विरासत, परंपरा और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हर भारतीय के खून में है और पूरी दुनिया में भारत का सम्मान उसकी संस्कृति और विरासत की वजह से ही है।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू (M Venkaiah Naidu) ने सोमवार को कहा कि सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों के लिए सामुदायिक सेवा अनिवार्य बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज, इस देश के युवाओं में युवावस्था से सेवा की भावना पैदा करना बेहद जरूरी है। मेरी सलाह है कि जब कोरोना वैश्विक महामारी खत्म हो जाएगी और स्थितियां सामान्य होंगी, तब सरकारी और निजी स्कूलों को कम से कम दो से तीन सप्ताह के लिए छात्रों के लिए सामुदायिक सेवा अनिवार्य बना देनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्कूली स्तर पर युवाओं में सेवा की भावना पैदा करने से उनमें वस्तुओं को साझा करने और दूसरों की देखभाल करने की भावना पैदा होगी। नायडू ने कहा कि वास्तव में, वस्तुओं को साझा करने और दूसरों की देखभाल का दर्शन भारत की सदियों पुरानी संस्कृति के मूल में है। इसका व्यापक प्रसार किया जाना चाहिए। हमारे लिए पूरा विश्व एक परिवार है। यही हमारे कालातीत आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का अर्थ है। इसी भावना के साथ हमें एक साथ आगे बढ़ना चाहिए।

 

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