Advertisement
  1. हिन्दी समाचार
  2. एस्ट्रोलोजी
  3. Shardiya Navratri 2022 : मां दुर्गाजी पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की पूजा में इस मंत्र का करें जाप

Shardiya Navratri 2022 : मां दुर्गाजी पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की पूजा में इस मंत्र का करें जाप

By संतोष सिंह 
Updated Date

Shardiya Navratri 2022: मां दुर्गा की पूजा-अराधना का पर्व नवरात्रि 26 सितंबर से  प्रारंभ हो रहा है। हिंदू धर्म (Hindu Religion) में नवरात्रि (Navratri) के त्योहार का विशेष महत्व होता है। प्रतिपदा तिथि (Pratipada Date) पर दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ पूजा की जाती है।

पढ़ें :- Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया के दिन घर ले आएं ये चीजें, मां लक्ष्मी बरसाएंगी कृपा

मां दुर्गा की सवारी

इस बार शारदीय नवरात्रि सोमवार से प्रारंभ होने के कारण मां दुर्गा का आगमन हाथी पर होगा। माता रानी की विदाई भी हाथी की सवारी पर होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां आदिशक्ति की नवरात्रि के नौ दिन उपासना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

मां दुर्गाजी का पहला स्वरूप ‘शैलपुत्री’

मां दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं, हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

पढ़ें :- Shukra Asta 2024:  विवाह के कारक ग्रह शुक्र हुए अस्त, नहीं होंगे शुभ काम

मन्त्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

कहानी
एक बार जब सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमन्त्रित किया, पर अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं। सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमन्त्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। परन्तु सती सन्तुष्ट नहीं हुईं।

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो सिर्फ माँ ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुँचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपनेआप को जलाकर भस्म कर लिया।

इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने ताण्डव करते हुये उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी फिर से भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनन्त है।

पढ़ें :- 01 मई 2024 का राशिफलः बुधवार के दिन जानिए क्या कहते हैं आपके सितारे?

अन्य नाम: सती, पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती और भवानी भी इन्हि देवी के अन्य नाम हैं।

Advertisement