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…तो इसलिए हर पिता अपनी बेटियों का करता हैं कन्या ‘दान’

By प्रिन्सी साहू 
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शादी की रस्मों में दो पल ऐसे होते है जिन्हें बेहद भावुक करने वाला माना जाता है पहला कन्यादान (Kanyadan) की रस्म और दूसरी लड़की की विदाई। जिंदगी भर हर पिता अपनी बेटी को परियों की तरह पालता है और फिर एक दिन इस रस्म के द्वारा कन्या दान कर देता है।

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यह परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है। कन्यादान (Kanyadan)  पिता और उसकी बेटी के रिश्ते को दिखाता है। क्योंकि पिता के लिए उसकी बेटी सबसे कीमती धन होती है, जिसे वो बहुत ही प्यार और दुलार से पालता है। पिता को इस बात का अहसास होता है कि उनको एक दिन उसका कन्यादान (Kanyadan) करना है।

हिंदू शादी में सात वचनों के साथ लगने वाले फेरों के बाद जब दुल्हन का पिता दूल्हे पर अपना हाथ रखता है। दूल्हे के हाथ में बेटी का हाथ देना दामाद को बेटी की जिम्मेदारी सौंपने का प्रतीक होता है।

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कन्यादान शादी की सबसे अहम रस्म और प्रतिष्ठान होता है। मान्यता के अनुसार, दूल्हे को भगवान विष्णु का प्रतिरूप कहा जाता है। इसलिए, कन्यादान (Kanyadan)  के साथ, माता-पिता भगवान के प्रतिनिधित्व के तौर पर दूल्हे को अपनी बेटी उपहार देते हैं।

कन्यादान (Kanyadan)  के बिना शादी अधूरी विवाह में कन्यादान के बिना शादी अधूरी मानी जाती है। कन्यादान एक बेटी को पत्नी बनने और शादी के बाद नए परिवार को गले लगाने को स्वीकारता है।

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